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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
तीसरा भाग - प्रेरितों के दल में ज्योती चमकती है (यूहन्ना 11:55 - 17:26)
इ - यीशु की मध्यस्थयी प्रार्थना (यूहन्ना 17:1-26)

4. यीशु कलीसिया की एकता के लिये प्रार्थना करते हैं (यूहन्ना 17:20-26)


यूहन्ना 17:20-21
“20 मैं केवल इन्ही के लिये विनती नहीं करता, परन्तु उनके लिये भी जो इन के वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, 21 कि वे सब एक हों; जैसा तू हे पिता मुझ में है, और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही वे भी हम में हों, जिस से संसार विश्वास करे कि तू ही ने मुझे भेजा है |”

मसीह ने अपने चेलों को परमेश्वर के प्रेम और आत्मा की शक्ति में दृढ़ किया और अपने पिता से विनती की कि वह आप के क्रूस पर चढ़ाये जाने से पहले उन्हें शैतान से बचाये और सुसमाचार के द्वारा उन्हें अभिषिक्त करे | आप के अपने प्रेरितों और कलीसिया के लिये की हुई प्रार्थना का निश्चय ही उत्तर मिलेगा ऐसा विश्वास होने के बाद आप ने भविष्य की ओर देखा और अपने प्रेरितों का प्रवचन सुन कर विश्वासियों की भीड़ को उभरते हुए देखा | शैतान और पाप पर क्रूस पर विजय पाने वाले मसीह का प्रतिरूप उन्हें खींच लाया | जीवित मसीह पर विश्वास करने से आत्मा उन के दिलों में उतर आएगा ताकि वे दिव्य जीवन के अनुग्रह में सहभागी हों | विश्वास के द्वारा उन का पिता और पुत्र से अनन्त एकता में मिलाप हुआ था |

मसीह ने उन विश्वासियों के लिये प्रार्थना की जो प्रेरितों के द्वारा विश्वास करने वाले थे | आश्चर्य इस बात का है कि जब आप ने प्रार्थना की तब तक वह मिले भी न थे | आप का वचन प्रेरितों के प्रवचन की बुनियादी सच्चाई सिद्ध करती है | इस लिये आप ने हमारे लिये की हुई प्रार्थना का क्या सारांश है? क्या आप ने हमारे स्वास्थ के लिये प्रार्थना की? या हमारी समृद्धि या भविष्य में हमारी सफलता के किये की थी?

जी नहीं | आप ने अपने पिता से हमें विनम्रता और प्रेम प्रदान करने के लिये विनती की ताकि हम सभी ईमानदार मसीहियों के साथ एक हों | हम यह न सोचें कि हम दूसरों से बेहतर हैं या उन का स्वभाव असहनिय होता है |

विश्वासियों की एकता मसीह का उद्देश है | जो कलीसिया विभाजित होती है वह आप की उस के लिये बनाई हुई योजना का विरोध करती है | परन्तु यह एकता जिस की मसीह ने बिनती की, वह दिव्य व्यवस्था पर खड़ी नहीं की जा सकती, बल्कि यह और वस्तुओं के अतिरिक्त प्रार्थना और आत्मा में आत्मिक बंधन होता है | जैसे परमेश्वर अपने तत्व में एक है इसी लिये मसीह ने अपने पिता से बिनती की कि वह सब विश्वासियों को पवित्र आत्मा की संगती में लाये ताकि वह सब उस में सुरक्षित रहें | तथापि मसीह ने यह प्रार्थना न की कि: “वे मुझ में या तुझ में एक हो,” बल्कि यह कहा कि, “वे हम में एक हों |” इस तरह आप यह बताते हैं कि आत्मा में यह पूर्ण एकता जो पिता और पुत्र में विशेष रूप में पाई जाती है, एक नमूना है | आप तुम्हें अपने स्तर तक उठाना चाहते हैं क्योंकि त्रिय संगती के बाहर नरक के सिवाये कुछ नहीं होता |

परमेश्वर की एकता में दृढ़ होने का उद्देश यह नहीं कि हम आत्मिक दृष्टि से प्रसन्न हों, बल्कि यह कि उन लोगों के सामने गवाही दें जो परमेश्वर से दूर रहते हैं | हम आशा रखते हैं कि वह जान लेंगे कि वे पाप में मर चुके हैं और अपने घमंड में दुष्ट हो चुके हैं और अपनी भावनाओं के बंदी बन गये हैं और इसलिये पश्चताप करें और उद्धारकर्ता की ओर मुड़ें | तुम जो परमेश्वर, पुत्र और पवित्र आत्मा से लिपटे हुए हो, विनम्रता और प्रेम करने के लिये शक्ति पाओगे और हर विश्वासी से प्रेम करने के लिये आत्मिक स्वतंत्रता पाओगे और उन की उपस्थिति में प्रसन्न होगे और उन के साथ मसीह के प्रेम के बहु मूल्य गवाह बन जाओगे | हम सब मनुष्य यीशु की दिव्यता के सबूत हैं | अगर सभी मसीही ईमानदार हों तो दुनिया में कोई गैर मसीही न रहता | उन का प्रेम और शान्ति सब को खींच लेते और उन का स्वभाव बदल जाता | आइये हम यीशु की मांग पर ध्यान दें और एक हो जायें | क्या तुम विभाजित कलीसिया में अविश्वास का कारण बनना चाहते हो , मानो मसीह का शरीर टुकड़े टुकड़े हो गया हो ?

यूहन्ना 17:22-23
“22 वह महिमा जो तू ने मुझे दी मैं ने उन्हें दी है, कि वे वैसे ही एक हों जैसे कि हम एक हैं, 23 मैं उन में और तू मुझ में कि वे सिद्ध होकर एक हो जाएँ, और संसार जाने कि तू ही ने मुझे भेजा, और जैसा तू ने मुझ से प्रेम रखा वैसा ही उन से प्रेम रखा |”

यीशु की महिमा क्या है ? क्या यह आप की चमक दमक है या आप की भव्यता का प्रकाश है ? जी नहीं | आप की महिमा आप की विनम्रता, सहनशीलता और कुलीनता के पीछे छिपी हुई है | आत्मा के उपहार का हर गुण, आप की महिमा की किरण है | यूहन्ना ने देखा और गवाही दी : “हम ने उस की महिमा खी |” वह आप के चेहरे के बदलने के संदर्भ में नहीं कह रहे थे या आप के पुनरुत्थान के विषय में कह रहे थे बल्कि आप की नीच चरनी और कठोर क्रूस के विषय में भी कह रहे थे | इन में दिव्य प्रेम की महिमा स्पष्ट रूप में दिखाई दी थी जहाँ पुत्र ने अपने आप को स्पष्ट महिमा से खाली कर लिया था और अपनी दिव्यता का तत्व मनुष्य के रूप में प्रगट किया | यीशु ने यह महिमा हमें प्रदान की है | पिता और पुत्र का आत्मा हम पर उतरा है |

हमें यह विशेष सम्मान दिये जाने का उद्देश दिखावे के लिये या स्वय: अपना विज्ञापन देने का नहीं है बल्कि इस लिये कि हम सब एक होकर अपने आप को अन्य सेवाओं के लिये प्रस्तुत करें और आपसी सेवाओं के लिये मिलते रहें और दूसरों को सम्मान देने का लक्ष रखें | इन्ही आत्मिक नियमों के अनुसार यीशु ने अपने पिता से उसी एकता और संगती के लिये बिनती की जो पवित्र त्रिय में है कि वह हम पर भी यह विशेष लक्षण बरसाये | परमेश्वर का प्रेम वह माप है जिस से कलीसिया को परखा जा सकता है | वही हमें अपने अनन्त स्वरूप में ढालता है |

सच पूछो तो परमेश्वर अपनी परिपूर्णता में कलीसिया में वास करता है (इफिसियों 1:23; कुलुस्सियों 2:9) | क्या तुम में इस अवतरण के शब्दों को अपने मुँह से कहने का साहस नहीं है : “क्योंकि उस में ईश्वर तत्व की सारी भरपूरी निसंदेह वास करती है और उस में तुम भरपूर हुए हो |” (कुलिस्सियों 2:9) | प्रेरित की यह गवाही सिद्ध करती है कि यीशु की अपनी मृत्यु से पहले की हुई प्रार्थनाओं का उत्तर दिया गया था | हम प्रभु की आराधना और प्रशंसा करते हैं क्योंकि हम टूटे हुए दिल वाले और अपराधी होते हुए भी आप हम से घ्रणा नहीं करते बल्कि हमें पवित्र कर के हमें अभिषिक्त करते है और अपने आप को हम से जोड़ लिया है ताकि हम आप का दिव्य जीवन जी सकें |

यीशु को पहले से ही विश्वास था कि हम प्रेम और विनम्रता में परिपूर्ण होंगे | आईये हम एक दूसरे से प्रेम करें और सम्मान भी करें | मसीह हम में धन दौलत, योग्यता और बुद्धिमानी में परिपूर्णता नहीं चाहते बल्कि दया और प्रेम और कृपा चाहते हैं | जब आप ने कहा कि : “जैसा तुम्हारा स्वर्गिय पिता परिपूर्ण है वैसे ही तुम भी परिपूर्ण हो जाओ,” तब आप का प्राथमिक उद्देश सहानुभूती और सहनशीलता था | यह आज्ञा आप के शत्रुओं से प्रेम करने के दृष्टिकोण का सारांश है | परन्तु अपनी मध्यस्ती प्रार्थना में आप उच्च स्तरिय परिपूर्णता चाहते थे यानी कलीसिया में और परमेश्वर के साथ आत्मिक एकता चाहते थे | आत्मा असमाजिकता या अकेलापन की ओर नहीं परन्तु सन्तों की संगती की प्रेरणा देती है | पवित्र त्रिय की एकता हमारे लिये एक उदाहरण है | और जब तक हम एक नहीं होते हम दुनिया में परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते | जिस तरह पुराने नियम में लोग व्यक्तिगत परमेश्वर का प्रतिरूप ले आये, इस से बढ़ कर कलीसिया अपने सदस्यों के साथ पवित्र त्रिय का प्रतिरूप प्रगट करे |

कलीसिया में पाई जाने वाली सामंजस्य दुनिया वालों को यह देखने के लिये प्रभावित करती है कि हम निश्चय ही परमेश्वर के पास से आये हैं | वह यह देखने लगे कि परमेश्वर प्रेम है | केवल शब्द या लम्बी व्याख्यायें स्वय: विश्वास निर्माण नहीं करते | परमेश्वर की सन्तान की सभाओं में पाई जाने वाली प्रसन्नता, लम्बे प्रवचन से अधिक बेहतर तरीके से बोल पाती है | इसी तरह से पवित्र आत्मा ने येरूशलेम की शुरुआत की कलीसिया को ईमानदार आत्मिक एकता में मिला दिया था |

प्रार्थना: हे प्रभु यीशु, हम आप का धन्यवाद करते हैं कि आप ने हम अयोग्य लोगों को आप पर विश्वास करने की प्रेरणा दी | आप ने अपने प्रेम की गवाही से हमें अपने सेवक बना लिया | हम आप की आराधना करते है क्योंकि आप ने हमें पवित्र कर के अपने आत्मिक शरीर (कलीसिया) का सदस्य बनने के लिये सुसज्जित किया | हमें पवित्र त्रिय के प्रेम में सुसज्जित कीजिये | हम आप की प्रशंसा और स्तुति करते हैं और बिनती करते हैं कि हमें अपनी कलीसियाओं में उपयोगी और जीवित एकता के साथ जीने के लिये शक्ति दीजिये |

प्रश्न:

108. यीशु ने अपने पिता से क्या माँगा जो हमारे लिये लाभदायक होता ?

www.Waters-of-Life.net

Page last modified on March 04, 2015, at 05:31 PM | powered by PmWiki (pmwiki-2.3.3)