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रोमियो - परमेश्वर के वचन को न केवल सुननेवाले, परन्तु उस अनुसार कार्य करने वाले बनो|
याकूब की पत्री का अध्ययन (डॉक्टर रिचर्ड थॉमस द्वारा)

अध्याय I

परीक्षा और प्रलोभन (याकूब 1:12-18)


याकूब 1:12-18
धन्यहै वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्योंकि वह खरा निकलकर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिस की प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करनेवालों को दी है| जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे; कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है| परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर, और फंसकर परीक्षा में पड़ता है| फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनता है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है| हे मेरे प्रिय भाइयों, धोखा न खाओ| क्योंकि हर एक इच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है,जिस में न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, और न अदल बदल के कारण उस पर छाया पडती है| उस ने अपनी ही इच्छा से हमें सत्य के वचन के द्वारा उत्पन्न किया, ताकि हम उस की सृष्टि की हुई वस्तुओं में से एक प्रकार के प्रथम फल हों|

इस अध्याय में पहले याकूब हमें परीक्षाओं को आनंदपूर्वक स्वीकार करने की शिक्षा देते हैं; यहाँ उन्हें आनंद मनाने का एक और अच्छा कारण मिला है “वह मनुष्य खुश रहता है जो परीक्षा को सहन करता है|” परीक्षाएं ना केवल ईसाई परिपक्वता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण, धीरज रखना सिखाती हैं| परीक्षा आत्मा को सहन करना सिखाती हैं जो अनंत पुरुस्कार, स्थायित्व लाती है जिसे सुंदरतापूर्वक ‘मुकुट’ कह सकते हैं| वह जो अंत तक सहन करता है, सुरक्षित होगा; सुरक्षा प्रक्रिया का पूरा और अंतिम निर्णय, आँखों से दिखने वाली कल्पना जैसे ‘जिन्दगी का मुकुट’ हो सकता है| वह ‘परीक्षित’ है, इस यूनानी संज्ञा के पीछे लगा विशेषण सोने की परख के बारे में कहता है| यह हमें इस बहुमूल्य धातु को शुध्द करने की प्रक्रिया और तब योग्य होने के बारे में स्मरण करता है (मलाकी 3:2)|

याकूब ने हमें एक आगे का परमानंद सुख दिया है जिसमें हम देख सकते हैं कि परमेश्वर का हमारे जीवन के प्रति उद्देश्य हमारी पीड़ा का शुध्दिकरण प्रभाव केवल मातम, अत्याचार और निंदा नहीं है| पापमयी अस्वच्छताएं हमारे में से धीरे धीरे निकल दी जाएंगी, और एक दैवीय छबी हममें दिखाई देगी,जैसे सोने की कड़ी परीक्षा प्रक्रिया के बाद शोधक का चेहरा इस धातु की ऊपरी सतही भाग पर दिखाई देता है |

यह ध्यान देने के लिए रोचक बात है कि हमारे कनान देश के उपदेशक यूहन्ना, पतरस, पौलुस और याकूब इस मुकुट की रूपरेखा द्वारा सम्मोहित किये गये थे| अपनी लाक्षणिक भाषा का लगातार उपयोग करने के बावजूद यह यीशु के शब्दों में नहीं परन्तु केवल उनके ‘काँटों जडित मुकुट’ पर दिखाई पड़ते हैं| युहन्ना इसे चार और बीस बुजुर्गों के सर पर रखते हैं (पुनरुत्थान 4:4) ताकि प्रत्येक दिव्य उपासना के लिए अपने मुकुट को सिहांसन के सामने निकाल सके| पतरस इस पुरुस्कार की घोषणा ‘एक महिमा के मुकुट’ के समान करते हैं ,उन लोगों के लिए जो झुण्ड को खिलाते हैं जैसे कि भेड़ का उदाहरण है (1 पतरस 5: 2-4 )|पौलुस इसे ‘धर्मिकता का मुकुट’ कहते हैं उन सभी के लिए जो प्रभु के द्र्श्यमान से प्रेम करते हैं (2 तीमुथियुस 4:8 ):एक मुकुट उनके लिए दिया गया जो विश्वासपूर्वक सहन करते हैं और प्रेमपूर्वक सेवा करते हैं –परमेश्वर की उपस्थिति में जीवन की पूर्णता और महिमा का प्रतीक हैं (पुनरुत्थान 2:10)|

प्रलोभन उचित रूप से अब प्रलोभनकारी आशय में मिल जाते हैं (13) इसके विपरीत उत्पति 22 : 1 में है कि परमेश्वर ईब्राहिम को प्रलोभित करते हैं| इसमें ऐसा कुछ भी लुभावना नहीं है कि किसी के पुत्र की बली देने के लिए कहा जाए| पुराने नियम में दो हिब्रू भाषा के दो समान अर्थ वाली संज्ञा को लिया गया है, उसमें से एक एकरूप में कम या अधिक A V में ‘प्रलोभन ‘ शब्द में अनुवादित है जबकि दूसरी सामान्य रूप से ‘परीक्षा’ या ‘सिध्द’ शब्दों में प्रस्तुत की गई है| यह प्रसंग हमें निर्णय लेने में सहायता करता है कि ‘परीक्षा’ इसहाक की कहानी में अधिक संतोषजनक है, जबकि शैतान के साथ हमारे प्रभु का आमना सामना प्रलोभन का एक अत्यधिक बुरा रूप था| हम परमेश्वर पर दोष नहीं लगा सकते जब हम प्रलोभन के प्रति समर्पित होते हैं| वह इस बात की इच्छा कभी नहीं करते कि हम जीवन की परीक्षाओं में असफल हों; क्योंकि जैसा कि एक यहूदी शिक्षक ने लिखा है: “यह मत कहो कि ‘यह परमेश्वर की ओर से है और मैंने महसूस किया; तुम्हें वह कार्य नहीं करने चाहिए जिनसे वे घृणा करते हैं’| यह मत कहो, ‘मेरे पाप करने का कारण वहीहैं, क्योंकि उन्हें और अधिक पापियों की आवश्यकता नहीं है|”

ठीक है, यदि परमेश्वर ऐसे प्रलोभन के कारण नहीं हैं तो फिर कौन हैं? शैतान यहूदा में आ गया था (युहन्ना 13: 27)| शैतान ने पतरस की मांग की और उसे गेंहू के समान छान दिया था (लूका 22: 31)| बहुत से प्रलोभन शैतानी विचारों से उत्पन्न हुए थे, परन्तु यह वह बात नहीं है जो याकूब 1 में दिया गया है| जब हम अपने आप को कामुकता को समर्पित करते हैं और उसके बाद अपने आपको पापमुक्त बताते हैं और पूरा दोष परमेश्वर, शैतान तथा अन्यव्यक्तियों पर डाल देते हैं, यह बहुत ही सरल बात है| याकूब कहते हैं कि हमें अपने आप में पाप के कारण खोजने चाहिए, और अधिक मूर्खतापूर्ण आवेश में आकर तर्क वितर्क करके अपनी समस्याओं को और अधिक बढ़ा नहीं लेना चाहिए| एक स्कॉट्लैंड के कवि ने अपने कडवे अनुभव के आधार पर

लिखा है: “नहो हमें कोई तकलीफ, तकलीफ के न होने की तकलीफ होती है|”

शैतान की युक्तियाँ भी हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकती जब तक कि हम स्वंय अपने आप को उसे ना सौंप दें| प्रत्येक व्यक्ति की अपनी आदतों,स्वभाव और इच्छाओं से उभरी कामुकताए होती हैं जो उसे परमेश्वर से दूर ले जाती हैं (14)| पाप की मजदूरी मृत्यु है, और जैसा याकूब की पुस्तक में है, “जब कामुकता को ग्रहण करते है यह पाप को लाता है; जब पाप समाप्त होता है आगे भविष्य में यह मृत्यु को लाता है” (15)|

प्रलोभन से दूर जाने के लिए, और इससे बचने के लिए जब कभी भी हम इससे ग्रसित हों , परमेश्वर ने चौड़ा मार्ग खोला है| हमारे साथ उनका व्यवहार अच्छाई आरम्भ करने के लिए है हमें ठोकर लगाने के लिए नहीं है| याकूब कहते हैं कोई गलती ना करो; क्योंकि परमेश्वर के रास्ते के बारे में गलत धारणा बनाना बहुत सरल है (१६)| प्लेटो के अनुयायी अच्छाई को परमेश्वर के रूप में देखते हैं जबकि ईसाईलोग जानते हैं कि परमेश्वर अच्छे हैं| प्रत्येक अच्छे उपहार (या देने के कार्य)का उद्गम सर्वशक्तिमान हैं| किसी को कुछ देना अच्छा है , क्योंकि देने वाला परिपूर्ण हैं| उनके उपहार हमारी अच्छाई और परिपूर्णता के विचार रखते हैं| स्वर्गीय पिता मानवीय कार्यों को उनके उपहार देने के लिए उपयोग करते हैं| हम अन्य व्यक्तियों की उदारता के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं, उन लोगों के हम आभारी हैं और परमेश्वर के कृतज्ञ हैं | जोन डोने परमेश्वर के प्रति हमारी कृतज्ञता इन शब्दों में व्यक्त करते हैं;

मित्रों ने मदद के लिए अपने हाथ बढाये और हमें प्राथमिकता दी,
परन्तु परमेश्वर के हाथ उन हाथों को सम्भाले जो हमें सम्भालते हैं
परमेश्वर के इन सभी यंत्रों पर जो मैंने प्राप्त किये हैं,
परमेश्वर की आशीष रहे |

विलियम बूथ अविश्वासियों के चंदा दानों को सम्भाले रखने के लिए स्वीकार करते हैं| एक अनोखा चुटकुला उन रहस्यों के अर्थ को सचित्र करता है जिसके द्वारा परमेश्वर अपने बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करतेहैं| एक बूढ़ी महिला थी जो एक तलघर में रहती थी, वह बड़ी कठिन परिस्थितियों से गुजर रही थी और कभी कभी ही उसके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन होता था| एक सुबह जब उसकी खाने की सामग्री रखने की आलमारी खाली हो गई,उसने अपने स्वर्गीय पिता से उमंगपूर्वक उसकी आवश्यकतानुसार भोजन उपलब्ध कराने के लिए प्रार्थना की थी| ठीक उसी समय उसके निकट रहनेवाला नास्तिक वहां से जा रहा था उसने उस महिला की प्रार्थना को सुना, उसने उस महिला के परमेश्वर पर विश्वास का एक नये तरीके से उपहास करने का निश्चय किया था| एक टोकरी में, ब्रेड, मक्खन, चीज, फल, सब्जियां और मांस रखकर उसे खिड़की द्वारा उस महिला के कमरे में लटका दिया था| महिला जब बाहर से अपने कमरे में आई उसने वह सभी खाद्य सामग्री पाई| उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा और वह प्रभु की दानशीलता के लिए धन्यवाद करती रही थी| दूसरी सुबह उस हंसी उडानेवाले ने उस महिला के दरवाजे पर दस्तक दी| उस महिला ने उसे अंदर आने दिया और उस व्यक्ति ने उस महिला से पूछा “क्या परमेश्वर ने तुम्हारी प्रार्थना का उत्तर दिया?” “हाँ” उस महिला ने कहा “वह हमेशा देते हैं – मुझ पर उनकी दया है|” इस बात पर वह व्यक्ति मुस्कुराया और बोला “ यह परमेश्वर नहीं था; यह मैं शैतान था जो यह टोकरी लाया था|” इस पर उस बूढ़ी महिला ने कहा: “शैतान इसे लाया था, लेकिन यह परमेश्वर थे जिन्होंने इसे भेजा था|”

यह वचन (17) हमें केवल परमेश्वर की अच्छाई के बारे में ही नहीं, परन्तु उनके अपरिवर्तनीय स्वभाव के बारे में भी स्मरण कराता है| ‘प्रेम वह नहीं जो जब भी परिवर्तन पाता है, बदल जाता है| यदि उनका प्रेम अनंत है तो यह उनकी अच्छाई है (यिर्मियाह 31:3)| उनके उपहारों के उच्चतम स्थान पर उनका अनुग्रह है जो उनके परिवार के सदस्यों के रूप में हमारे पुनर्जन्म को लाता है| पानी और आत्मा के नये सिरे से हमारा जन्म हो चुका है (युहन्ना 3:5)| पौलुस इस पदबंध को यह कहते हुए इसका विस्तार करते हैं ‘पीढ़ियों के पापों को धोकर पवित्र आत्मा में उनका सुधार और नवीनीकरण हुआ है (तितुस 3:5 )| यहाँ सुधार का प्रतिनिधि ‘सत्य का शब्द’ है (18)| वास्तविकता पर ध्यान दें कि हमारे पूर्ण ईसाई अनुभव में शब्द और आत्मा हमारे पुनर्जन्म में अविच्छेद्य हैं | बोने की शिक्षाप्रद कहानी में हमारे प्रभु इस लक्षण पर जोर देते हैं – बीज जोकि बोना है परमेश्वर के राज्य का शब्द है ( मत्ती 13: 19 ), एक शब्द जो कुछ लोगों ने नहीं समझा, अन्य और कुछ लोगों द्वारा अपने पास नहीं रखा गया था| वहां जहाँ सच्ची प्रतिक्रिया मिली अर्थात बीज अच्छे स्थान पर गिरा है|

हालाँकि रूपक बीज बोने से जन्म देने के रूप में बदल गया है| यह क्रिया प्रत्यक्ष रूप से यूनानी प्रसव विज्ञान व सुरक्षित प्रसव होने से संबंध रखती है| वह उजाले के पिता हमें दोनों अभिभावकों का किरदार निभाते हुए पैदा करते हैं| हम उनके हैं निर्माण और पीढ़ी द्वारा,जन्म व गोद लेने द्वारा हम उनके हैं, यह एक दोहरा आश्वासन है कि कुछ भी हमें उनसे व उनके प्रेम से अलग नहीं कर सकता है|

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