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Previous Lesson -- Next Lesson रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
आरम्भ: अभिवादन, प्रभु का आभारप्रदर्शन और “परमेश्वर की धार्मिकता” का महत्व, इस पत्री का आदर्श है। (रोमियों 1:1-17)
अ) पह्चान और प्रेरित का आशीर्वाद (रोमियों 1:1-7)रोमियो 1:1 जब पौलुस का जन्म हुआ तब उन का नाम शाउल रखा गया. इस से पहले यह नाम उस व्यक्ती का था जो बिन्यामीन जातीका एक घमंडी राजा रह चुका था. शाउल कलीसिया पर बहुत जुल्म करते थे, परन्तु जब उन्हों ने यीशु मसीह कि महीमा देखी तब वह जान पाये कि वह कुछ भी नहीं हैं| तब उन्हों ने “पौलुस” नाम स्वीकार किया जिसका अर्थ है “अदना व्यक्ति (दास)” और उन्हों ने अपनी इस प्रसिद्ध पत्री को लिखने की शुरुआत इन शब्दों से की: यीशु मसीह के दास की और से| अपने विवरण में खुद को यीशु मसीह का दास (सेवक) बता कर पौलुस ने अपनी स्वतंत्रता खो देने को मान लिया और पूरी तरह से अपने आप को अपने मालिक को समर्पित किया| उन्हों ने अपनी इच्छा से अपने मन को गौरव और महानता से खाली कर दिया और विनम्र बन गये, यहां तक के अपने अहंकारी स्वाभाव को भी त्याग दिया और यीशु मसीह की आत्मा के नियमों के अनुसार जीने लगे और अपने प्रभु की इच्छा को उल्लास पूर्वक पूरा किया| इस का अर्थ यह हुआ कि जीते जागते यीशु मसीह स्वयं इस पत्री के लेखक ठहरे, जो रोमियों के नाम लिखी गयी, और उसे अपने आज्ञाकारी सेवक पर प्रकट किया, चाहे जैसे भी हो परन्तु यह पत्री पौलुस की इच्छा के विरुद्ध उन पर प्रकट नहीं की गयी बल्कि अपनी पूरी इच्छा और सहमति से उन्हों ने इसे स्वीकार किया था, यीशु अपने विश्वासियों को दास नहीं बनाते बल्की उन्हें विश्वास करने के लिए, प्रेम करने के लिए, यहाँ तक कि अपने आप से अलग रहने के लिए, पूरी स्वतंत्रता देते हैं| फिर भी मसीह पर विश्वास करने वाले लोग आप से आलग रहना नहीं चाहते क्योंकी यीशु प्रेम का सोता हैं जिस में वे डूब जाना चाहते हैं| मसीह के बंधक और सेवक बन कर पौलुस ने जो विनम्रता जताई उस कारण उन्हें ऊँचा पद एवं मान सम्मान मिला| उनके प्रभु ने उन्हें अपना प्रेरित चुना ताकि वह दुनिया के कई देशों में आपका राज्य फैला सकें. इसके लिए यीशु ने पौलुस को सर्व अधिकार दिए थे जैसे कि राजा और राष्ट्रपति अपने राजदूतों को समर्थ और अधिकार देते हैं, जिस से वे लगातार उन से संपर्क और सहमति बनाये रख सकें| इसी तरह से यीशु प्रत्यक्ष रूप से तुम्हें अपनी सेवा में बुलाते हैं| यीशु की पुकार को सुनने के लिए अपने ह्रदय को खोलो और पूरी तरह से, विनम्रता के साथ, अपने आप को तुरंत यीशु को सौंप दो, जिस से आपकी शक्ति तुम्हारे द्वारा दुसरों तक पहुँच सके| जैसेकी यीशु के राजदूत, पौलुस, अपनी अन्य पत्रीयों द्वारा संसार को बदल सके थे| यीशु के बाद “अदना दास,” पौलुस से बढ़ कर महान व्यक्ति कोई नहीं हैं| यीशु मसीह के दास, पौलुस का सुसमाचार क्या था? वह सिर्फ परमेश्वर का तेजस्वी सुसमाचार था| पौलुस, इस दूखपूर्ण दुनिया के सामने स्वयं अपने विचार लेकर नहीं आये बल्की सिर्फ सुसमाचार स्पष्ट किया| रोमवासियों के लिए सुसमाचार एक जाना पहचाना शब्द था| यह रोम के कैसर घराने में शाही फरमान या किसी खुश खबर की घोषणा करने के लिए उपयोग में लाया जाता था, जैसे की उस समय जब उस के घर में किसी बच्चे का जन्म होता था या जब वह अपने दुश्मनों के ऊपर विजयी होता था| इस तरह यह शब्द शाही परिवार में खुश खबरी की घोषणा करने के अर्थ में प्रयोग में लाया जाता था. परन्तु पौलुस ने प्रभु के शुभ संदेशों को लोगों तक पहुँचाया यीशु मसीह की उपस्थिति की, आप का विरोध करने वाली शक्तियों पर आपकी विजय, और आप से मिलने वाली पापों से मुक्ती के परिणामों की गवाही दी ताकि सुननेवाले पापों से मुक्त हो कर पवित्र बनें और सभी दैवीय धार्मिकता में प्रवेश करें| पवित्र परमेश्वर ने पौलुस को, जो एक वकील था, चुन कर अलग किया और उसे शैतान की गुलामी से आजाद किया ताकि वह उन लोगोंको आजाद करके परमेश्वर के अनुग्रह की जानकारी देते जिन्हों ने मुक्ति के लिए नेक कामों को गले से लगा कर मूसा के नियम के भारी बोझ के नीचे अपनी गर्दनें झुकाई थीं.पौलुस ने यह कदम इसलिए उठाया ताकि यह लोग खुद को अपने नेक कामों से मुक्ति पाने की व्यर्थ कोशिश न करते हुए यीशु के द्वारा स्वर्ग में प्रवेश करें क्योंकी आप ही एक मात्र मार्ग हैं जो आप के पिता की ओर ले जाता है| प्रार्थना: ओ प्रभु यीशु मसीह हम आप का धन्यवाद करते हैं कि आप ने अपने सेवक को बुलाया और उन्हें दुनिया में भेजा ताकि हम उनके द्वारा आप के वचनों को सुन सकें| हमारे अभिमानी स्वभाव और आत्म संतुष्टि के लिए हमें क्षमा कीजिये और विनम्र बननेके लिए हमारी मदद कीजिये जिससे हम आप के प्रेम के दास बन सकें और आप की दयालुता की इच्छा को संसार में सभी विश्वासियों के साथ पूरा कर सकें| प्रश्न: 6. इस पत्री के पहले वाक्यमे वह कौन से ख़िताब लिखे गये हैं जिन्हें पौलुस ने अपने लिए स्वीकार किया?
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