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Home -- Hindi -- John - 074 (The raising of Lazarus)
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Previous Lesson -- Next Lesson

यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
क - यीशु की यरूशलेम में अन्तिम यात्रा (यूहन्ना 7:1 - 11:54) अन्धकार का ज्योती से अलग होना
4. लाज़र का जिलाया जाना और उसका परिणाम (यूहन्ना 10:40 – 11:54)

3) लाज़र का मृतकों में से जी उठाना (यूहन्ना 11:34-44)


यूहन्ना 11:38-40
“38 यीशु मन में फिर उदास होकर कब्र पर आया | वह एक गुफा थी और एक पत्थर उस पर रखा था | 39 यीशु ने कहा, ‘पत्थर हटाओ |’ उस मरे हुए की बहिन मार्था उससे कहने लगी, ‘हे प्रभु, उसमें से अब तो दुर्गंध आती है, क्योंकि उसे मरे चार दिन हो चुके हैं |’ 40 यीशु ने उससे कहा, ‘क्या मैं ने तुझ से नहीं कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी |’”

यरूशलेम के आस पास के लोग किसी चट्टान को काट कर कबर बना लेते थे और उसमें अपने मरे हुए लोगों को दफ़न कर के सामने की सकरी खुली जगह पर बड़ा गोल पत्थर रख देते थे | इस पत्थर को दाहिनी या बांई ओर घुमा कर कबर को खोलना या बन्द करना संभव था |

उन्होंने लाज़र को ऐसी ही चट्टान में खोदी हुई कबर में दफ़न किया था | यीशु कबर के पास पहुँचे और सब के चहरों पर मृत्यु का डर देखा | आपने मृत्यु में परमेश्वर का क्रोध सब पापियों पर उंडेला हुआ देखा, मानो परमेश्वर ने जीवितों को बरबाद करने वाले के हाथ में सौंप दिया हो | निर्माता जीवितों की मृत्यु नहीं चाहता, परन्तु उनका पश्चताप और जीवन में परिवर्तन चाहता है |

यीशु ने उस पत्थर को जो कबर के मुँह पर था लुडकाने की आज्ञा दी | इस से लोगोंको सदमा पहुंचा क्योंकी मृतक को छूने से व्यवस्था के अनुसार मनुष्य कुछ दिनों के लिये अपवित्र हो जाता था | चार दिन कबर में रहने के बाद शरीर सड़ना शुरू हो गया होगा | मार्था ने विरोध किया और कहा, “प्रभु मृतक के आराम में बाधा डालना ठीक नहीं है क्योंकी अब उसमें से बदबू आने लगी है | यीशु ने उस से कहा, “मार्था, तेरा विश्वास कहाँ है ? अभी तूने स्वीकार किया था की यीशु परमेश्वर का पुत्र और मसीह है और मृत्कों को जिला सकता है |” मृत्यु की सच्चाई और कबर के प्रतिबिंब ने उसकी आँखों को धुन्दला कर दिया था और वह नहीं जानती थी कि उसका प्रभु उससे क्या चाहता था ?

यधपि आपने मनुष्य की योग्यता से बढ़ कर उसके विश्वास को मज़बूत किया और साहस को बढ़ाया | आपने पूर्ण विश्वास चाहा जिससे परमेश्वर की महिमा की कल्पना होती है | यीशु ने यह नहीं कहा, “विश्वास करो और तुम मुझे एक बड़ा आश्चर्यकर्म करते हुए देखोगे |” इस से पहले आपने अपने चेलों से कहा था कि लाज़र की बीमारी मृत्यु के लिये नहीं परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिये है |” (यूहन्ना 11:4) | यीशु जानते थे कि अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिये आप को क्या करना था | आप ने मार्था का ध्यान मृत्यु की वास्तविकता से परमेश्वर की महिमा की ओर खींचने की कोशिश की, जो विश्वास के द्वारा प्रगट होती है | आप का उद्देश स्वय: अपना सम्मान नहीं परन्तु अपने पिता की भव्यता और महिमा करना था |

इसी तरह मसीह आप से कहते हैं, “अगर तुम विश्वास करो तो परमेश्वर की महिमा देखोगे |” अपनी आँखें अपनी समस्याओं और परीक्षण से हटाओ | अपने अपराध और बीमारियों से परेशान ना हो बल्की यीशु की तरफ देखो, आप की उपस्तिथी पर विश्वास करो और अपने आप को उन्हें ऐसे समर्पित कर दो जैसे एक बच्चा अपनी माँ से लिपट जाता है | आप की इच्छा पूरी होने दो जो तुम से प्रेम करते हैं |

यूहन्ना 11:43-44
“41 तब उन्होंने उस पत्थर को हटाया | यीशु ने आँखें उठाकर कहा, ‘हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तूने सुन ली है | 42 मैं जानता था कि तू सदा मेरी सुनता है; परन्तु जो भीड़ आस पास खड़ी है, उनके कारण मैं ने यह कहा, जिससे कि वे विश्वास करें कि तू ने मुझेभेजा है |’”

मार्था को यीशु के वचन पर विश्वास था और उसका विश्वास आप की आज्ञा से सहमत था | उसने जो लोग वहाँ उपस्थित थे उन्हें पत्थर हटाने के लिये कहा | भीड़ में तनाव उत्पन्न हुआ | क्या यीशु कबर में जाकर अपने प्रिय की लाश का आलिंगन करेंगे या कुछ और करेंगे ?

परन्तु यीशु कबर के सामने शांत खड़े रहे | उन्होंनें प्रार्थना में अपनी आँखें ऊपर उठाई और ऊँचे शब्दों में कहा | यहाँ हमारे पास यीशु की एक अंकित प्रार्थना है | आपने परमेश्वर को अपना पिता कह कर अभिवादन किया | आप ने पिता का धन्यवाद किया क्योंकी आपने अपना पूरा जीवन केवल परमेश्वर के पितृत्व के पवित्रीकरण और आराधना के लिये समर्पित किया था | आप ने लाज़र के जिलाए जाने से पहले ही साफ शब्दों में अपनी प्रार्थना का उत्तर देने के लिये परमेश्वर को धन्यवाद दिया | जहाँ दुसरे लोग रो रहे थे वहाँ यीशु प्रार्थना कर रहे थे | आप ने अपने पिता से अपने मित्र को पुनर्जीवन देने के लिये कहा | यह दिव्य जीवनका चिन्ह है जो मृत्यु पर विजयी होता है | पिता ने स्वीकार किया और आप को अधिकार दिया कि आप मृत्यु के आतंक के शिकार को बचायें | यीशु को विश्वास था कि आपकी प्रार्थना सुनी जायेगी क्योंकी आप प्रती क्षण अपने पिता की आवाज़ सुनते थे | अपने जीवन की हर अवस्था में यीशु प्रार्थना करते रहे परन्तु यहाँ आपने ऊँची आवाज़ में प्रार्थना की ताकि लोगों को वह रहस्य मालुम हो जो वहाँ होने वाला था | आपने अपने पिता का धन्यवाद किया क्योंकी वो हमेशा आपकी प्रार्थना का उत्तर देता था | कोई पाप उन्हें अलग नहीं करता, न ही कोई दीवार उनके बीच खड़ी होती | पुत्र अपनी इच्छा पर आग्रह नहीं करता, न ही अपने सम्मान की मांग करता या अपने लिये शक्ती की क्षमत: चाहता था | पिता की परिपूर्णता पुत्र में काम करती थी | आपकी पिता समान इच्छा ने लाज़र को मृतकों में से जिलाया | इन सब बातों को यीशु ने भीड़ के सामने स्वीकार किया ताकि वो जानें कि पिता ने पुत्र को उनके पास भेजा है | यहाँ लाज़र का जिलाया जाना पिता की महिमा का कारण बन जाता है जो त्रिय एकता का आश्चर्यजनक चिन्ह हुआ |

यूहन्ना 11:43-44
“ 43 यह कह कर उसने बड़े शब्द सेपुकारा, ‘हे लाज़र,निकाल आ !’ 44 जो मर गया था वह कफन से हाथ पाँव बँधे हुए निकल आया, और उसका मुँह अँगोछे से लिपटा हुआ था | यीशु ने उनसे कहा, ‘उसे खोल दो और जाने दो |’”

परमेश्वर का सम्मान करने के बाद यीशु ने जोर से पुकारा, “लाज़र बाहर निकाल आ |” तब उस मरे हुए मनुष्य ने सुना (जब की मरे हुए सामान्यत: नहीं सुन सकते हैं |) मानव जाती का व्यक्तित्व मृत्यु से नष्ट नहीं होता | स्वर्ग में विश्वासियों के नाम लिखे हुए हैं | विधाता का बुलावा मुक्तिदाता की आवाज़, जीवन देने वाली आत्मा की प्रेरणा, मृत्यु की निचली सतह तक पहुँच जाती है | ठीक उसी तरह जैसे शुरू में पवित्र आत्मा अन्धियारे में मंडलाता था ताकी अन्यवस्था में सृष्टि की व्यवस्था निर्माण करे |

लाज़र को यीशु की आवाज़ सुनने और आज्ञा मानने की आदत थी | कबर में भी उसने सुना और विश्वास के साथ आज्ञा मानी | यीशु के जीवन का सिद्धांत उसमें प्रवाह कर गया, उसका दिल धड़कने लगा, आँखें खुल गयीं और उसके हाथ पांव हिलने लगे |

इसके पश्चात, आश्चर्यकर्म का दूसरा चरन शुरू हुआ | लाज़र को पट्टियों से मजबूती से लपेटा गया था | उस मरे हुए व्यक्ती की स्तिथि एक तितली या कीड़े के समान थी, जो पंख निकलने से पहले कुछ भी महसूस नहीं करता | वह अपने मुँह पर लिपटा हुआ रुमाल भी हटा नहीं सकता था क्योंकी उसके हाथ पट्टीयों से बंधे हुए थे | इस लिये यीशु ने उन्हें आज्ञा दी कि उसे खोल दो |

सभी लाज़र के पीले चेहरे को देख कर विस्मित थे, वो पट्टियों में लिपटा हुआ होने पर भी चल रहा था | जिस प्रकार वो यीशु की ओर बढ़ रहा था सभी उसे टकटकी लगा कर देख रहे थे |

लाज़र भीड़ में से होता हुआ अपने घर की ओर चल पड़ा | यूहन्ना ने हमें वहाँ जो लोग उपस्तिथ थे उनके यीशु को नमन करने या खुशी के आंसू बहाने या एक दूसरे को गले लगाने के बारे में कुछ भी नहीं बताया | न ही इस मृतक के जिलाए जाने की तुलना विश्वासियों का यीशु के दूसरी बार आने पर हवा में उठाये जाने से की | यह सब कम महत्व रखता है | यूहन्ना हमारी आंखों के सामने यीशु की जीवनदाता के तौर पर तस्वीर खींचते हैं ताकि हम विश्वास करें और अनन्त जीवन पायें | प्रचारक यूहन्ना भीड़ के बीच में थे | विश्वास के द्वारा उन्होंने परमेश्वर की महिमा, पुत्र में देखी क्योंकी उन्होंने यीशु की आवाज़ सुनी थी और आपकी शक्ती के सामने आत्मसमर्पण किया | क्या आप यीशु पर विश्वास करके मृतकों में से जी उठे हो ?

प्रार्थना: प्रिय प्रभु यीशु, लाज़र को आपने पिता के नाम से जिलाने के लिये हम आप का धन्यवाद करते हैं | आप भी मृतकों में से जी उठे हो | हम धन्यवाद करते हैं कि आप का जीवन हम में है | विश्वास के द्वारा हम आप के साथ जी उठे हैं | हम आप से बिनती करते हैं की हमारे राष्ट्र में से मृतकों को जिलाइये ताकि अविश्वासी आप पर विश्वास करें और आप के साथ एक होकर अनन्त जीवन पायें |

प्रश्न:

78. लाज़र के जिलाए जाने में परमेश्वर की महिमा किस तरह दिखाई दी?

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Page last modified on March 04, 2015, at 05:14 PM | powered by PmWiki (pmwiki-2.3.3)