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Home -- Hindi -- The Ten Commandments -- 11 Ninth Commandment: Do Not Bear False Witness Against Your Neighbor

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विषय ६: दस आज्ञाएँ - परमेश्वर की सुरक्षा करने वाली दीवार जो मनुष्य को गिरने से बचाती हैं|
सुसमाचार की रोशनी में निर्गमन २० में दस आज्ञाओं का स्पष्टीकरण

११ -- नवी आज्ञा : अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठी गवाही ना देना|



निर्गमन २०:१६
तुम्हे अपने पड़ोसियों के विरुद्ध झूठी गवाही नहीं देनी चाहिए|


११.१ -- ज़ुबान की शक्ति

ज़ुबान एक छोटा सा अवयव है और इसकी असीम शक्ति है| कभी कभी यह मूल्यवान औषधी या धन से अधिक शक्ति शाली होती है| हमारी जुबान के शब्द, एक तीली के समान हो सकते हैं जिससे एक सूखा जंगल आग पकड़ लेता है| लेकिन एक उपयोगी शब्द एक जहाज की छोटी पतवार के समान है जो उसे खेकर एक सुरक्षित बंदरगाह तक ले जाती है| ज़ुबान के साथ मनुष्य झूठ बोल सकता है, ईश्वर निंदा कर सकता है या सत्य कह सकता है परमेश्वर की प्रशंसा कर सकता है या हताश इन्सान को सुख दे सकता है, क्यों? याकूब की पत्री के तीसरे अध्याय में, वे हमें तीन उपयोगी उदहारण देते हैं जो हमें प्रायश्चित की और अग्रसर करते हैं| हमें हमारी जुबान से निकले प्रत्येक शब्द परमेश्वर के शब्द की रोशनी में परिक्षण करना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक बुरा शब्द एक सुधरे हुए ह्रदय की ओर नहीं, एक भ्रष्ट ह्रदय की ओर संकेत करता है| लेकिन कहा गया प्रत्येक कुलीन शब्द, ह्रदय में यीशु की आत्मा को प्रकट करता है|


११.२ -- हमारे पवित्रीकरण की अनिवार्यता

हमें हमारे रक्षक यीशु द्वारा हमारी ज़ुबान की सफाई व हमारे दिमागों को नया कर देने की आवश्यकता है तो हम उनके सत्य को समझे और कह सके| श्रद्धामय उपदेशक याजक यशायाह लडखडा गए जब वे पवित्र परमेश्वर के सामने अपने लोगो की, समूहों के एक त्रयी परमेश्वर के साथ संधि करने के लिए खड़े हुए थे| वह अंचभित हो गए थे जब उन्होंने परमेश्वर के लबादे का छोर देखा था और रोकर चिल्लाये थे, “संताप मुझ पर, क्योंकि मै अधूरा हूँ क्योंकि मै अस्वच्छ होठों वाले लोगों के बीच में रहता हूँ, क्योंकि मेरी आँखों ने राजा, समूहों के परमेश्वर को देखा है|” तब देव दूतों में से एक उड़कर उसके पास आया, जिसके हाथ में एक जलता हुआ कोयला था, जो उसने जलती हुई वेदी पर से चिमटे द्वारा उठाया था| और उसने चिमटे से कोयले को उसके मुहं को छुआ था और कहा था “मै बहुत डर गया था| मैंने कहा, “अरे, नहीं! मै तो नष्ट हो जाऊंगा| मै उतना शुद्ध नहीं हूँ कि परमेश्वर से बातें करूँ और मै ऐसे लोगों के बीच रहता हूँ जो उतने शुद्ध नहीं है कि परमेश्वर से बातें कर सकें| किन्तु फिर भी मैंने उस राजा, सर्वशक्तिमान यहोवा, के दर्शन कर लिए है|” वहां वेदी पर आग जल रही थी| उन साराप (स्वर्गदूतों) में से एक ने उस आग में से चिमटे से एक दहकता हुआ कोयला उठा लिया और उस दहकते हुए कोयले से मेरे मुख को छुआ दिया| फिर उस साराप (स्वर्गदूत) ने कहा! “देख! क्योंकि इस दहकते कोयले ने तेरे होठों को छू लिया है, सो तूने जो बुरे काम किये है, वे अब तुझ में से समाप्त हो गए हैं| अब तेरे पाप धो दिए गए हैं|” (यशायाह ६:५-७)

जब मनुष्य का पवित्र परमेश्वर से सामना होता है वह अपने ह्रदय की बुराइयाँ और कपट को पहचान पाता है| तुरंत वह जान लेता है कि सर्वशक्तिमान ही हमारे अंतिम मानदंड हैं| उनकी रोशनी में हम उस अस्वच्छता, कपट और भ्रष्टता को देख सकते हैं जिससे हम भरे हुए हैं| मनुष्य पवित्र जीवित परमेश्वर के सामने आये बगैर सतही रूप से जीता है| यह स्थिति तब तक नहीं बदलती जब तक पापी अपने परमेश्वर के निकट खिच नहीं जाता, और तब, सब परिस्थितियां बदल जाती हैं| उपदेशक पतरस ने जब अपने परमेश्वर की पराक्रमी शक्ति का अनुभव किया था वह अपने मुहँ के बल गिर पड़े थे और चिल्ला कर रोये थे “जब शामौन पतरस ने यह देखा तो वह यीशु के चरणों में गिर कर बोला, “प्रभु मै एक पापी मनुष्य हूँ| तू मुझसे दूर रह|” (लुका ५:८)| वह जान गए थे कि सौम्य यीशु टकटकी लगाकर उनके ह्रदय में देख रहे थे और उसके पापों को उन्होंने प्रकट किया था| यद्यपि हमारे प्रभु पहले से ही यह जानते थे कि पतरस उनको पहचानने से नकारने वाले है फिर बाद में वह मनुष्यों को पकड़ने वाले प्रत्येक मछुआरे का चिन्ह बन जायेंगे|

यीशु सत्य अवतार है और उनकी आत्मा विशेष रूप से सत्य की आत्मा है (यूहन्ना १४:१७)| सच की आत्मा को दुःख होता है जब कभी भी हम झूठ या गपशप करते हैं| परमेश्वर निंदा या विश्वासघात नहीं करते; वह शुद्ध हैं और उनके वचन सत्य हैं और अवश्य पूर्ण होंगे| वह हमारा नवीनीकरण करना और ईमानदारी के साथ हमें तैयार करना कहते हैं| वह हमसे प्रेम में सच कहने की विनती करते हैं| किसी के मुहँ पर निष्ठुरता या ठन्डे पन से सत्य कहना उस व्यक्ति की हत्या करने के समान है| लेकिन यदि तुम सहजतापूर्वक झूठी प्रसंसा करते हो और सत्य को छिपाते हो, तुम झूठ कह रहे हो, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम उससे वास्तब में कितना प्रेम करते हो| कभी कभी झूठी प्रशंसा और निंदा हाथ में हाथ लेकर जाती है| अतः सच के बिना प्रेम झूठ है, और प्रेम के बिना सच जानलेवा है|


११.३ -- झूठ और इसके स्त्रोत

त्रयी परमेश्वर अपने आप में सच है| लेकिन शैतान एक झूठा है और सभी झूठों का पिता है| वह आरम्भ से एक हत्यारा है| यीशु उसे एक बुराई और इस जगत का राजकुमार कह कर बुलाते हैं| जो कुछ भी इसके द्वारा बाहर आता है, झूठ है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता यह कितना सत्य दिखाई देता है|

एक बुराई ने हवा को छला था| उसके धूर्त प्रश्नों ने सत्य का विकृत रूप ले आया था| उसने परमेश्वर पर हवा के विश्वास को हिला दिया था| तब हवा का गर्व, प्रबल इच्छा और परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह जाग गए थे और एकदम उत्तेजित सीधे विद्रोह में विकसित हुए थे|

यीशु के बपतिस्मे के एकदम बाद में पवित्र आत्मा यीशु को जंगल में शैतान द्वारा प्रलोभित करने के लिए ले गया था| यीशु ने ४० दिन और ४० रात उपवास व प्रार्थना करने के बाद प्रलोभनकर्ता का प्रतिरोध किया था जो प्रश्नों के साथ सत्य को तोड मरोड़ने के लिए आया था| शैतान ने उनसे कहा था, “ यदि तू परमेश्वर का पुत्र है...” यदि उसने कहा.... होता, “तू परमेश्वर का पुत्र है,” वह सत्य को घोषित करता था| लेकिन उसने यीशु के ह्रदय में अपने स्वर्गीय पिता के साथ अपने पुत्र संबध के बारे में संदेह डालते हुए वास्तविकता को प्रश्नों के रूप में कहा था| शैतान उनको उनके पिता से अलग करना और उनको गुमराह करके स्वयं अपने लिए उपयोग करना चाहता था| यीशु ने अपने शब्दों में उसे उत्तर नहीं दिया| उन्होंने ना तो उस एक मात्र बुरे के साथ बहस की न ही अपने स्वयं के अनुभवों के आधार पर कुछ कहा था| इसके स्थान पर उन्होंने कहा था “यह लिखा हुआ है!” यीशु ने परमेश्वर के शब्द को घोषित किया था, और यह शैतान की युक्तियों से एकदम अलग था| झूठों के पिता पर विजय पाने का यहाँ कोई अन्य मार्ग ही नहीं है केवल इसके कि परमेश्वर के वचन बाइबिल पर पूर्णरूप से निर्भर हो जाना है|

यह व्यंग्यपूर्ण है कि शैतान बाइबिल जानता है और चतुराई पूर्वक इसका उपयोग करता है| उसने यीशु द्वारा ठुकराए जाने पर तुरंत बाइबिल के पाठ्यक्रम में से लाकर यीशु को उत्तर दिया था| फिर भी वह उन्हें इस सन्दर्भ से बाहर ले गया और उन्हें गर्व की ओर आकर्षित तथा उनके पिता की विश्वसनीयता को परखने की ओर अग्रसर करने का प्रयास करने लगा था| यीशु ने वापस उत्तर दिया था, “यह लिखा है कि तू अपने ईश्वर अपने परमेश्वर को प्रलोभन न देना,” और उसी समय शैतान के कपटी उद्देश्य, दैवीय सत्य की रोशनी में स्पष्ट रूप से उजागर हो गये| परमेश्वर के पुत्र और शैतान के बीच इस अत्यधिक तीखी तकरार से यह सिद्ध हो गया है कि शैतान और कुछ नहीं केवल झूठ कहता है, यहाँ तक कि कभी कभी वह इसमें सत्य के कुछ तत्व भी शामिल करता है| तिस पर भी अंत में उसके शब्द परमेश्वर और उनके पुत्र के विरोध में विद्रोह व धोखाधड़ी को बढावा देते हैं| मसीह के बाद आने वाले दर्शनशास्त्र और धर्मो को परखिये और तुम देखोगे कि उनमे सत्य का कुछ भाग होते हुए भी वे कितने भ्रामक हैं| आज शैतान वही कार्य कर रहा है| वह विश्वासियों और सत्य की खोज करने वालों को, बाईबिल में विश्वास न करने के कई कारण बताते हुए छल रहा है जैसे बाईबल भ्रष्ट, निराकृत (रद्द), मानवीय हाथों द्वारा लिखित है आदि| शैतान को तुम अपने ह्रदय में कुछ भी फुसफुसाने की अनुमति न देना| इसके स्थान पर उससे युद्ध करना जैसा यीशु ने किया जब उन्होंने कहा था, “यह लिखा हुआ है ....|”


११.४ -- सबसे बड़ा झूठ

दुनिया के भिन्न भिन्न विचार और मत ना केवल झूठ बोलते हैं परंतु कानून और सत्य के तत्वों के साथ चमकते और जगमगाते है जो कि सामाजिक संरचना के लिए आवश्यक दिखाई देता है| यद्यपि इस जगत के विचारों की दिशा गलत है| व्यंग्य पूर्वक रूप से, आंशिक सच मुख्य छलावे को सहारा देता है| अजनबियों के लिए इस्लाम जैसे एक प्राकृतिक “अल्लाह का धर्म” के रूप में प्रकट होता है, क्योंकि बाईबिल के, नए और पुराने दोनों नियमों से वचनों को तोड़ मरोड़ कर उनका मौखिक प्रसारण किया गया है| अभी भी सभी मुस्लिम परमेश्वर के पुत्र की सूली पर मृत्यु को स्पष्टरूप से नकारते हैं| वे इस बात को नहीं स्वीकारते कि वे खोये हुए है और केवल यीशु मसीह और क्रूस पर उनकी मृत्यु द्वारा ही वे परमेश्वर के न्याय से बच सकते हैं अन्यथा बच नहीं सकते हैं| साम्य वाद और सिद्धांतवाद भी कुछ विकृत सत्यों के साथ शिष्टतापूर्ण झूठों में मिलजुल गए है और जिसके परिणामस्वरूप विनाशकारी नास्तिकता का मार्ग प्रशस्त हो गया है|

कुछ उदार धर्मशास्त्री या धार्मिक सम्प्रदाय बाईबिल के वचनों को सन्दर्भ से बाहर ले जाते है ताकि लोग, यीशु को विचारो और जीवन के स्त्रोत मानने के स्थान पर अपनी पुस्तकों, मतों पर विश्वास करें| कोई भी पिता तक, उनके सिवाय नहीं पहुँच सकता है| इसके अतिरिक्त यीशु ने अपने वादों को अनंत सत्य के रूप में पूरा करने के लिए सूली पर अपने प्राण त्याग दिए और मृतकों में से पुनः जी उठे थे| हम सभी उन महिमामयी एकमात्र के सम्मुख झूठे दिखाई देते हैं, परंतु जो उन में विश्वास करता है, उसका स्वरूप बदल जायेगा और वह ईमानदारीपूर्वक ,सच्चाईपूर्वक जियेगा और झूठों के जंगल से बचकर निकल जायेगा|

हम रेडियो, दूरदर्शन, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, समारोह और आनंद मेले में पाए जाने वाले बड़े छोटे, चालाक व पुरातन झूठों के एक बड़े प्रमाण में जनसंचार माध्यमों की झड़ी को नहीं रोक सकते| जनसाधारण को हेरफेर करके यह धोखे योजनावद्ध रुप से दिए जाते हैं, और उसकी प्रतिक्रिया का हिसाब किताब पहले ही किया जाता है| राजनीति में बहुत से वक्ता विरोधी दल की निंदा करके अपने दल को आगे बढ़ाते है जैसे वही आख़िरकार सत्य और एक मात्र उपाय है| छोटे परिणाम की प्रंशसा और बड़ी गलतियों को छिपाया जाता है| टेढ़े मेढे (घुमावदार) सत्य, विरोधी को आश्चर्य में डालते हैं और हेर फेर करके बनाये गए समाचार नफरत का निर्माण करते हैं|


११.५ -- प्रतिदिन झूठ

झूठ ना केवल बहुत से राजनीतिज्ञों के शब्दों में बल्कि हमारे दैनिक जीवन में भी प्रभावी है| सत्य शीघ्रतापूर्वक विनाश कर देता है, लोग प्रायः एक कप काफी के ऊपर भी एक दूसरे की निंदा करते हैं| लेकिन एक बार यदि निंदा किये जाने वाला व्यक्ति सामने आ जाए तो लोग मुस्कुराते हुए पाखंडी रूप से विषय बदल देते हैं जिसके हम हमारी बाल्यवस्था से आदि है| हमने शायद बहुत तकलीफदायक झूठ ना बोले हों, परंतु हमने किसी को बदनाम या नीचे दिखाया हो, यह सब “झूठों के पिता” से प्रेरित बाते हैं| हम ने सच्चाईपूर्वक प्रायश्चित करना चाहिए और हमेशा लोगों की अनुपस्थिति में भी उनके बारे में वैसी ही बात करना चाहिए जैसे कि वे उपस्थित हो| कोई सफ़ेद झूठ नहीं! कोई आधा सच नहीं! यह सब एकदम जानलेवा हैं| हम गपशप का अंत कर सकते हैं, जिस व्यक्ति के बारे में बात की जा रही है उस के पास सीधे जाकर उनसे उनकी पूरी कहानी जानकर स्पष्टीकरण ले सकते हैं| हमें ऐसे व्यक्ति का साथ देना चाहिए इसके स्थान पर कि भीड़ का साथ दे| नवी आज्ञा हमें सिखाती है जैसे कि एक मछली झूठों की बाढ़ की तेज झड़ी के उलटी ओर तैर रही हो| कभी कभी हम ऐसी संकटपूर्ण स्थिति में अपने आप को पाते हैं जब हमें अचानक से एक अलोकप्रिय विषय पर अपने विचार देने होते हैं| ले किन हम “अपनी पहचान” बताना नहीं चाहते, और ना ही हमारे उन मित्रों व रिश्तेदारों के बारे में बात करना चाहते हैं जो उस समय वहां उपस्थित नहीं है| ऐसी स्थिति में हम प्रायः ही आधे सच का सहारा लेते हैं या बहुत से खोखले शब्दों और चालाकी भरे स्पष्टीकरणों द्वारा बात को ढकते हैं| एक चूहा अपना बिल ढूंढ पाए इससे भी पहले कुछ लोग बहाने ढूढ़ लेते हैं|

झूठ ने हमारे समाज में विष फैला रखा है| कोई भी एक दूसरे पर विश्वास नहीं करता| बहुत से लोग इस बात की बहुत निगरानी करते हैं कि कोई अन्य व्यक्ति ऐसा कुछ कह रहा है जो उनकी अपनी बात के एकदम वि परीत है| गलत फहमियां लोगो को बाँट देती है और उन्हें अकेला कर देती हैं, जैसे कि उनके बीच एक कांच की दीवार हो| झूठ मनुष्य को अकेला करता है| मनोव्यथा बढती है और यह उन शांत पलों में प्रवर्तित होती है| हमे यीशु की शक्ति का उपयोग करने की आवश्कता है और निडरता पूर्वक हमारे द्वारा कहे गये झूठों और विध्वंस्कारिक निंदाओं को स्वीकार करना चाहिए| हमें खुलकर उनके क्षमादान के लिए प्रश्न पूछने की आवश्यकता है | तब विश्वास का निर्माण होगा एवं गर्व चूर चूर हो जायेगा|


११.६ -- कौन सच में अपने भाई को समझ सकता है?

यह मुनासिब (उचित) है कि हम स्वयं अपने आपको परखें कि वास्तव में हम अपने भाई या बहन को उसी प्रकार समझ पाते हैं जिस प्रकार से परमेश्वर उनकी कद्र करते हैं| यीशु ने हमारे सतही न्यायों को अन्दर तक भेद दिया था और हमें चेतावनी दी थी, “दूसरों पर दोष लगाने की आदत मत डालो ताकि तुम पर भी दोष न लगाया जाये| क्योंकि तुम्हारा न्याय उसी फैसले के आधार पर होगा, जो फैसला तुमने दूसरों का न्याय करते हुए दिया था| और परमेश्वर तुम्हे उसी नाप से नापेंगा जिससे तुमने दूसरों को नापा है| तू अपने भाई बन्दों की आँख का तिनका तक क्यों देखता है? जबकि तुझे अपनी आँख का लट्ठा भी दिखाई नहीं देता| जब तेरी अपनी आँख में लट्ठा समाया है तो तू अपने भाई से कैसे कह सकता है कि तू मुझे तेरी आँख का तिनका निकालने दे| ओ कपटी! पहले तू अपनी आँख से लट्ठा निकाल, फिर तू ठीक तरह से देख पायेगा और अपने भाई की आँख का तिनका निकाल पायेगा|”

पहाड़ पर दिए गए इस आज्ञा पर प्रवचन से जो कोई भी थोडा बहुत समझ सका है वह शांत रहेगा और दूसरों का न्याय करने से पहले स्वयं अपना निरीक्षण करेगा| हो सकता है कि हमारे भाई ने वास्तव में आँख में लकड़ी के एक कण के समान छोटी सी गलती की हो परंतु हम यह स्वीकार करना नही चाहते कि हमारी अपनी आँखों में लकड़ी के ऐसे बहुत से लट्ठे है कि लकड़ी की मिल खोलने के लिए पर्याप्त है! यीशु हम में से प्रत्येक को, घृणा, अस्वच्छ विचार व कार्य, ईर्ष्या, लालच, छल, पाखंड, और अभिभावकों की अवज्ञा का और परमेश्वर के दिन का उल्लंघन दर्शाना चाहते थे! जो कोई भी पवित्र आत्मा की दोष सिद्धि (धारणा) तले अपने आपका आत्मदमन करता है, अब और अधिक अपने घमंड या श्रेष्ठता का अनुभव करते हुए दुसरो का ना अपमान करेगा और ना उन्हें ठुकराएगा परंतु यह सोचना शुरू करेगा कि कैसे वह उन लोगो को सही प्रकार से मदद कर सकता है जैसे परमेश्वर हमें मदद करते हैं|

हम अन्य लोगों का उचित रूप से न्याय नहीं कर सकते जब तक कि हम उनकी समस्याओं को पूरी तरह से नहीं समझते| वैसी स्थिति में यदि हम हों तो क्या करना चाहिए? वह मनुष्य कैसा होता यदि उसने उन आशीषों और दैवीय मार्गदर्शन के मार्ग का अनुभव किया होता जो हमने किया है? यह कहने के द्वारा, “तुझे अपने पडोसी से अपने समान ही प्रेम करना चाहिए” परमेश्वर हमें दर्शाते हैं कि यह कितना आवश्यक हैं कि जब हम अपने भाई का न्याय कर रहे हों तो हमें विशेष ध्यान देना चाहिए| निश्चय ही हमें उससे प्रेम करना चाहिए|

इसी से साक्षी के रूप में शपथ लेने की समस्या उभर कर आती है: कौन जाने यदि उसने वास्तव में उन वस्तुओं को देखा था जैसा किवास्तव में घटा हो और उन्होंने उसे पकड़ा हो? निश्चित रूप हम सब बातों को पूर्ण रूप से नहीं देख पाते जैसे परमेश्वर देखते हैं| यदि हम अपने भाई का न्याय करते हैं वह हमेशा त्रुटिपूर्ण रहेगा| यदि हम इस बात को समझते हैं तो हमें दूसरे के बारे में निष्कर्ष लेने के लिए कूदना नहीं चाहिए परंतु पूर्णरूप से और प्रार्थना पूर्वक हमने उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए| ओह, काश ऐसा हो कि परमेश्वर हमें एक माँ की आँख दे, एक पुलिस वाले की नहीं!


११.७ -- हमें सत्य कैसे कहना चाहिए

हमारी सीमित क्षमताओं के साथ हमें सत्य जानने के लिए क्या करना चाहिए? क्या हम झूठ को आवश्यक के समान और सत्य को बुराई के समान माने? नहीं, कभी नहीं! आँखों देखे गवाह के रूप में, हमें हमारी क्षमता के साथ सत्य कहना पड़ता है| हमें परमेश्वर से समझदारी के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ताकि हम अपने भाईयों या बहनों के प्रति नाइंसाफी ना करें| विश्वासियों को उनकी यातनाओं के दौरान विशेष अनुग्रह की आवश्यकता होती है ताकि वे सत्य को सही रूप से बिना तोड़े मरोड़े कह सके| हमें पवित्र आत्मा के नेतृत्व की आवश्यकता है ताकि हम अन्य विश्वासियों के जीवन खतरे में ना डाले| हमें हमेशा सच कहना चाहिए परन्तु यह हमेशा आवश्यक नहीं है कि हम दूसरों की भलाई के लिए पूरा सत्य कहें| जो यीशु का अनुसरण नहीं करते हैं सोच सकते हैं कि हम उनसे झूठ कह रहे हैं जैसा कि वे सत्य की आत्मा को नहीं जानते| वे इस बात की कल्पना नहीं कर सकते कि पवित्र आत्मा हमें हमेशा सत्य कहने के लिए हमारा नेतृत्व करता है|

बाईबिल हमें हमारे प्रतिदिन के जीवन में, स्कूलों में, समाज में, परिवारों में हमारे भाईयों और बहनों के जीवनों में अच्छी बातों को विशिष्टता देने तथा उनकी वास्तविक गलतियों के लिए टीका टिप्पणी ना करने के लिए लगातार अभ्यस्त करने में मदद करती है| हमें अपने मित्रों के लिए और शत्रुओं के लिए भी सकारात्मक रूप से बिना किसी झूठ के सोचना चाहिए| पौलुस ने कुरिन्थियों को स्पष्ट किया था, “इससे मेरा भला होने वाला नहीं है| प्रेम धैर्यपूर्ण है, प्रेम दयामय है, प्रेम में ईर्ष्या नहीं होती, प्रेम अपनी प्रशंसा आप नहीं करता| वह अभिमानी नहीं होता| वह अनुचित व्यवहार कभी नहीं करता, वह स्वार्थी नहीं है, प्रेम कभी झुंझलाता नहीं, वह बुराईयों का कोई लेखा-जोखा नहीं रखता| बुराई पर कभी उसे प्रसन्नता नहीं होती| वह तो दूसरों के साथ सत्य पर आनंदित होता है| वह सदा रक्षा करता है, वह सदा विश्वास करता है| प्रेम सदा आशा से पूर्ण रहता है| वह सहनशील है| प्रेम अमर है| जबकि भविष्यवाणी का सामर्थ्य तो समाप्त हो जायेगा, दूसरी भाषाओं को बोलने की क्षमता युक्त जीभें एक दिन चुप हो जाएंगी, दिव्य ज्ञान का उपहार जाता रहेगा,” (१ कुरिन्थियों १३:४-८)

यदि हम प्रेम की एक आत्मा में रहते हैं हम कभी पापियों का न्याय नहीं कर पाएंगे| निश्चित ही हम एक विनम्रता एवं प्रेम की आत्मा में उस व्यक्ति को समझने, सहायता करने और उसे सीधा करने का जितना हमसे हो सके प्रयास करेंगे| पौलुस जो एक ईसाई पुरोहित के कार्य करने में परिपक्वता के एक उल्लेखनीय स्तर पर पहुँच चुके थे, ने इफिसियों के विश्वासियों को लिखा था, “सो तुम लोग झूठ बोलने का त्याग कर दो| अपने साथियों से हर किसी को सच बोलना चाहिए, क्योंकि हम सभी एक शरीर के ही अंग हैं|” (इफिसियों ४:२५)| हमें हमेशा सत्य कहने और सिखने के लिए संघर्ष करना चाहिए| हम पवित्र आत्मा में कितने भी परिपक्व हो जाये परंतु इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता शैतान हमें हमेशा विश्वासियों से झूठ बोलने, अन्य लोगों का रूखेपन से न्याय करने एवं अलग मत रखने वाले लोगो के प्रति नाराजगी दिखाने के लिए उत्साहित करता है| जैसे यीशु ने स्वयं को प्रलोभनों में डाला था हम भी प्रलोभित किये जायेंगे| इसलिए पौलुस ने इफिसियों के नाम अपनी पत्री में लिखा था, “मतलब यह कि प्रभु में स्थित हो कर उसकी असीम शक्ति के साथ अपने आपको शक्ति शाली बनों| परमेश्वर के सम्पूर्ण कवच को धारण करो| ताकि तुम शैतान की योजनाओं के सामने टिक सको| क्योंकि हमारा संघर्ष मनुष्यों से नहीं है, बल्कि शासकों, अधिकारियों, इस अंधकारपूर्ण युग की आकाशी शक्तियों और अम्बर की दुश्तात्मिक शक्तियों के साथ है|” (इफिसियों ६:१०-१२)|

युहन्ना, प्रेम के उपदेशक, सांकेतिक रूप से मनुष्य के जीवन में झूठ की जड़ों को दर्शाते हैं: “किन्तु जो यह कहता है कि यीशु मसीह नहीं है, वह झूठा है| ऐसा व्यक्ति मसीह का शत्रु है| वह तो पिता और पुत्र दोनों को नकारता है| वह जो पुत्र को नकारता है, उसके पास पिता भी नहीं है किन्तु जो पुत्र को मानता है, वह पिता को भी मानता है|” (१ युहन्ना २:२२-२३)| “वह जो परमेश्वर के पुत्र में विश्वास रखता है, वह अपने भीतर उस साक्षी को रखता है| परमेश्वर ने जो कहा है, उस पर जो विश्वास नहीं रखता, वह परमेश्वर को झूठा ठहराता है| क्योंकि उसने उस साक्षी का विश्वास नहीं किया है, जो परमेश्वर ने अपने पुत्र के विषय में दी है|” (१ युहन्ना ५:१०)| त्रयी परमेश्वर के सत्य को तुम्हारे जीवन का केंद्र बनाये रखने का अर्थ है कि तुम अपने व्यवहारिक जीवन में सत्यतापूर्ण बने रहोगे|


११.८ -- कुरान में परमेश्वर की चालाकी

इस्लाम विशेषरूपसे सत्य को एक विदेशीय आत्मा के रूप में प्रदर्शित करता है| सूरा-अल-इमरान में हमने पढ़ा, “वे चालाक हैं और अल्लाह चालाक है और अल्लाह सभी चालाकों में से सबसे बड़े चालाक हैं| यहाँ चालाक का उल्लेख यहूदियों से है जिन्होंने यीशु की हत्या का षड्यंत्र रचा था| लेकिन अल्लाह ने इस्लामिक धारणा के अनुसार उन्हें मूर्ख बनाया, यीशु को सूली की पीडाओं से जीवित ही ऊपर उठा लिया| इसका अर्थ है कि अल्लाह ने यीशु को सूली पर चढाने की अनुमति नहीं दी थी और उन्हें स्वयं अपने पास अपनी सर्वोच्च चालाकी द्वारा उठा लिया था| यह और कुछ नहीं एक ऐतिहासिक घटना का विकृत रूप है जिसने अन्तरिक्ष में और एक समय में अपना स्थान बनाया था| अल्लाह को सूली के सामने अपने व्यवहार को प्रकट करना पड़ा था, और यह दर्शाना पड़ा था कि वह व्यक्ति रूप में सत्य नहीं है, अर्थात वह एक सच्चे परमेश्वर नहीं हैं, परंतु सत्य के शत्रु, और सभी चालाकों में से सर्वश्रेष्ठ हैं| सूली ने सभी सत्यों के शिखर पर इस्लाम में अल्लाह को वैसे ही प्रकट किया था जैसे वास्तव में वे हैं| केवल शैतान सूली की वास्तविकता को नकारना चाहेगा ताकि लोग सुरक्षित नहीं रहेंगे और अनंत जीवन प्राप्त नहीं करेंगे|

कुरान में इस्लाम ने अल्लाह को “सबसे अधिक चालाक” खैरुल मकिरिन के रूप में प्रस्तुत किया है| कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उसके अनुयायी चालाकी को एक सद्गुण, और जो कुछ भी वेचाहते हैं उसे प्राप्त कर लेने का एक विधिसम्मत साधन, व इस्लामिक धर्म के प्रचार करने का एक मददगार मार्ग के रूप में मानते हैं| मुहम्मद ने युक्तिसंगत रूप से चार मामलों में झूठ बोला और धोखा दिया था: इस्लाम के प्रसार के पवित्र युद्ध में, दो शत्रुओं की संधि में, एक पुरुष को अपनी पत्नी के प्रति, और एक पत्नी को अपने पति के प्रति| इस्लाम में तुम अपने मित्र या शत्रु किसी पर विश्वास नहीं कर सकते| प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे पर अविश्वास करता है क्योंकि मुस्लिम लोगों में विश्वास की कमी है|


११.९ -- जीवन के झूठ या परमेश्वर का सत्य

यदि तुम उन एकमात्र जो सूली पर चढ़ाये गए और मृतकों में से जी उठे, को स्वीकार नहीं करते हो, सत्य की आत्मा तुम में बनी नहीं रहती है| तुम्हारा पूरा जीवन झूठ और आत्म विश्वासघाती बन जाता है क्योंकि तुमने यीशु की सूली पर मृत्यु को नाकारा है| यीशु ने हमारे सर्वोच्च याजक के समान पापियों और झूठे पश्चातापियों के पापों के लिए प्रायश्चित करने की दिशा में सूली पर अपना लहू बहाया है| मृतकों में से उनके पुनुरुत्थान के बाद उन्होंने सत्य की आत्मा उन पर जो पिता के वादे के लिए प्रर्थना में थे पर उंडेल दी| उनकी जुबानों में आग के समान पवित्र आत्मा दिखाई दी थी| यह स्पष्ट करता है कि यीशु अपने शिष्यों के साथ क्या करना चाहते थे: उन्हें अपनी झूठ बोलने वाली जुबानों को जला कर नई जुबान, आध्यात्मिक जुबान प्राप्त करनी पड़ी थी जो अनंत सच को घोषित करने के योग्य हो| अनंत सत्य क्या है? परमेश्वर हमें पिता, यीशु हमारे प्रभु और रक्षक और पवित्र आत्मा हममें निवास करतें है| त्रयी परमेश्वर अनंत वास्तविकता है, जिसे सत्य की आत्मा यीशु के अनुयायियों द्वारा स्वीकार करती है| यह हमारा विशेषाधिकार है हम उनके सत्य को प्रेम में सूली पर उन के प्रायश्चित कार्य को प्रत्येक व्यक्ति के लिए घोषित करते हुए कहें|

एक प्रार्थना करने वाले मित्र का मिलना कितनी अद्भुत बात है जो कि तुमसे प्रेम में सत्य कहता है! वह उन हजारों की अपेक्षा अच्छा है जो हमेशा तुम्हारी प्रशंसा करते हैं| इसीलिए हमें यीशु से प्रार्थना करना चाहिए कि हमें प्रेम में सत्य कहने और हमारे मित्रों के लिए प्रार्थना करने में हमारी मदद करें| यही तो यीशु ने हमें आज्ञा दी है: “यदि तू ‘हाँ’ चाहता है तो केवल ’हाँ’ कह और ‘ना’ चाहता है तो केवल ‘ना’| क्योंकि इससे अधिक जो कुछ है वह उससे है जो बाद है|” (मत्ती ५:३७) हमें चाहिए कि यीशु से प्रार्थना करे कि हमें उनमे सत्यपूर्ण बनाये और प्रेम में उनके सत्य को कहने के लिए हमारा मार्गदर्शन करें|

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