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रोमियो - परमेश्वर के वचन को न केवल सुननेवाले, परन्तु उस अनुसार कार्य करने वाले बनो|
याकूब की पत्री का अध्ययन (डॉक्टर रिचर्ड थॉमस द्वारा)

अध्याय II

घमंड की बुराईयाँ (याकूब 2:1-13)


याकूब 2:1-13
1 हे मेरे भाइयों, हमारे महिमायुक्त प्रभु यीशु मसीह का विश्वास तुम में पक्षपात के साथ न हो| 2 क्योकिं यदि एक पुरुष सोने के छल्ले और सुंदर वस्त्र पहिने हुए तुम्हारी सभा में आए और एक कंगाल भी मैले कुचैले कपड़े पहिने हुए आए | 3 और तुम उस सुंदर वस्त्र वाले का मुंह देख कर कहो कि तू अच्छी जगह बैठ, और उस कंगाल से कहो, कि तू यहाँ खड़ा रह, या मेरे पांव की पीढ़ी के पास बैठ| 4 तो क्या तुम ने आपस में भेद भाव न किया और कुविचार से न्याय करने वाले न ठहरे ? 5 हे मेरे प्रिय भाइयों सुनों; क्या परमेश्वर ने इस जगत के कंगालों को नहीं चुना कि विश्वास में धनी, और उस राज्य के अधिकारी हों, जिस की प्रतिज्ञा उस ने उन से की है जो उस से प्रेम रखते हैं | 6 पर तुम ने उस कंगाल का अपमान किया: क्या धनी लोग तुम पर अत्याचार नहीं करते? और क्या वे ही तुम्हें कचहिरयों में घसीट घसीट कर नहीं ले जाते?क्या वे उस उत्तम नाम की निंदा नहीं करते जिस के तुम कहलाए जाते हो? 7 क्या वे उस उत्तम नाम की निंदा नहीं करते जिसके तुम कहलाये जाते हो? 8 तौभी यदि तुम पवित्र शास्त्र के इस वचन के अनुसार, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख, सचमुच उस राज व्यवस्था को पूरी करते हो, तो अच्छा ही करते हो | 9 पर यदि तुम पक्षपात करते हो, तो पाप करते हो; और व्यवस्था तुम्हें अपराधी ठहराती है | 10 क्योंकि जो कोई सारी व्यवस्था का पालन करता है परन्तु एक ही बात में चूक जाए तो वह सब बातों में दोषी ठहरा | 11 इसलिए कि जिस ने यह कहा, कि तू व्यभिचार न करना उसी ने यह भी कहा, कि तू हत्या न करना इसलिए यदि तू ने व्यभिचार तो नहीं किया, पर हत्या की तौभी तू व्यवस्था का उलंघन करने वाला ठहरा | 12 तुम उन लोगों की नाई वचन बोलो, और काम भी करो, जिन का न्याय स्वतंत्रता की व्यवस्था के अनुसार होगा | 13 क्योंकि जिस ने दया नहीं की, उसका न्याय बिना दया के होगा: दया न्याय पर जयवंत होती है |

वचन 2 और 3 हमें सामाजिक प्रतिकूल प्रभावों के अनुमानित उदाहरणों,जो कि स्थान व उम्र के बदलाव के बंधन का प्रदर्शन हैं, देते हैं | सोने की अंगूठियाँ देवदूत-संबंधी युग में प्रतिष्ठा का चिन्ह मानी जाती थी | अभिजात वर्ग के लोग दोनों हाथों की प्रत्येक ऊँगली में अंगूठियाँ पहनते थे | आजकल प्रतिष्ठा केवल कपड़ों या सोने की वस्तुओं की अपेक्षा अन्य भौतिक वस्तुओं जैसे एक पोर्श या फरारी कार के रूप में खोजी व दर्शाई जा रही है |

भेदभाव का सत्याभासी वाद-विवादों द्वारा न्यायीकरण हो सका होगा |हमें कहा गया था कि काले लोग मुख्य रूप से उनके स्वंय के अलग गिरजाघरों में घरेलूपन का अनुभव करते हैं, या अन्यथा उनके जीवंत प्रकार की उपासनाओं व साक्क्षियोंसे अत्याधुनिक गिरजाघरों के शांत लोगों की शांति भंग होती है | वास्तव में विदेशों से आकर बसने वाले चाहे काले हों या भूरे, वे यूरोपियन गिरजाघरों या उच्चतम क्लबों के सदस्यों द्वारा उनको स्वीकार करते हुए एक स्वागत की आशा रखते हैं | तेज गति से चलने वाली कारें, सुंदर घर और उच्च स्तर का वेतन , ठुकराए जाने के अहसास की पूर्ति नहीं कर सकता है | सोने की अंगूठियाँ मैले कुचैले कपड़ों के विपरीत रखे गये हैं |सभी जानते हैं कि मैले कुचैले कपड़ों में कोई सदगुण नहीं हैं,ठीक जैसे एक या दो अंगूठियाँ पहनने में कोई हानि नहीं है ( लूका 15:22)| हमारे प्राध्यापक हमारे सजने संवरने में दिखावा और इसके बराबर ही दिखावटी भद्देपन के विरोध में चेतावनी देते रहते थे |दोनों ही वक्ता के बाहरी रूप की ओर ध्यान खींचते हैं और उनके सन्देश के महत्व को घटाते हैं |

स्पष्टरूप से यह एक उदाहरण सिध्दांत के परे चले गया है | यदि गिरजाघर में एक गरीब को नीचा दिखाना गलत है, तो उनसे कहीं भी अनादरपूर्वक व्यवहार करना गलत है | यह कुछ ईसाइयों के लिए कल्पनीय है कि गिरजाघर के पावन वातावरण में उनके निचले स्तर पर ध्यान न देते हुए उनसे अच्छा व्यवहार करे और कहीं बाहर उनसे अनजान बने रहें | कुछ लोग बहस करते हैं कि तुम सभी मनुष्यों से एक समान व्यवहार नहीं कर सकते हो |तुम्हें अपने आचरण को कनफूची नियम के परस्पर सम्बन्धों के आधार पर श्रेणीबध्द करना चाहिए |हालाँकि इस साधारण नियम का पालन करने के लिए,नम्र एवं आगे बढ़ते हुए मछुआरे पतरस द्वारा हमारे लिये छोड़ा गया सबसे सुरक्षित मार्ग है कि, “सभी मनुष्यों का आदर करो” (1 पतरस 2: 17) |यूनानी पाठ्य में ‘आदमी’ शब्द नहीं है, तो हमें महिलाओं का भी आदर करना चाहिए | बाद में पतरस इस यूनानी क्रिया जिसका अर्थ आदर है, का सही सही उपयोग करते हैं | अवश्य ही यह मानसिकता यीशु के दिमाग और पौलुस के अभ्यास में स्पष्ट रही,जो कभी भी शासकों की उपस्थिति में अपने आप को कम समझने के विचार से ग्रसित नहीं रहे,या उन्होंने उनकी चापलूसी का व्यवहार किया, न ही नम्र लोगों के साथ अनादरपूर्वक व्यवहार किया | लोगों के साथ उनके वर्ग के अनुसार व्यवहार करना, झूठे मानदंड का प्रतीक है, तुम ज्ञान की हमारी परिभाषा को, जैसे अनंत मूल्यों की रौशनी में मनुष्यों और विवादों को तोलना कह सकते हो |

एक अत्यंत महत्वपूर्ण कारण,क्यों दीन व ठुकराए हुए हमारे गंभीर सोचविचार का अधिकार रखते हैं, यह है कि परमेश्वर ने उन्हें उनकी मूर्खता, कमजोरी के साथ बुध्दिमान,शक्तिशाली व कुलीन लोगों की तुलना में अधिक प्रमुखता देते हुए उन्हें अपने निकट लिया है |प्राय: गरीब विश्वास में और परमेश्वर के राज्य के हिस्से में अमीर होते हैं (मत्ती 5:3)| राज्य के बिना एक मुकुट का मूल्य कम है, इस बात का संकेत इस वचन द्वारा दिया गया है(1:12) |मुकुट और राज्य दोनों को उन्हें देने का वादा है जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं | चाहे हम अपने दिलों को मुकुट व सत्ता पर केन्द्रित करे या ना करे वास्तव में यह महत्व रखता है कि यीशु मसीह के प्रति विश्वास में हम अमीर होने चाहिए | गरीबों के पास पहले से ही बहुत सी समस्याएँ होती है इसलिए हमें उनके पक्ष में एक झुकाव दर्शाना चाहिए |

पूर्वाग्रह, कानून में अवज्ञा, और इसके आगे उत्पीडन की ओर ले जाते हैं | हमें वास्तव में इस बात का सुख है कि हमारे प्रजातंत्रीय समाज में साधारण नागरिको के अधिकार सुरक्षित रखे गये हैं और यहाँ अन्याय के भारी भरकम रूप को सहन नहीं किया जा सकता है | लेकिन यह संभव है कि कानून की सीमा में कार्य किया जाए और कार्य क्रूरतापूर्वक किया जाए | अभी कुछ दिन पहले ही एक एबर्डीनशायर के एक ठाकुर जिन्होंने अपने किरायेदार को क़ानूनी प्राविधिकता के अनुसार बेदखल कर दिया था, के इस कार्य के बारे में दूरदर्शन के कार्यक्रम में बहस हो रही थी | वह अपने अधिकारों के लिए शिष्टतापूर्वक खड़ा रहा था | इस बेदखल करने के पीछे वास्तविक कारण यह था कि अमरीकी तेल व्यापारियों की यह इच्छा थी कि उनके किरायेदार उस मकान के लिए दस गुणा अधिक किराया दें जो दे सकने में वे असमर्थ थे | इस निम्न स्तर की बेदखली का अर्थ जीविका का नुकसान और कुछ मामलों में परिवार का टूटना हुआ होगा | हमारे लिए तो यह सिध्दांत स्पष्ट है: कि सिर्फ विद्वेष या पैसे की लालच में किसी असहाय व्यक्ति को कचहरी तक खींचकर न्यायाधीश के सामने खड़ा करने की चेष्टा कभी नहीं करना है |

पहले से ही हमारे प्रभु की यह भविष्यवाणी है कि हजारों मनुष्यों में उनके अनुयायियों को राज्यपालों और शासकों के सामने दंड भुगतना पड़ा होगा | याकूब ऐसे ही किसी न्यायालय में खड़े हुए होंगे | कुछ नम्र विश्वासियों द्वारा भ्रष्ट न्यायाधीशों के सामने आत्म सुरक्षा के लिए किए गये प्रयत्नों में सफलता मिलने के बहुत कम अवसर रहे होंगे | दोष लगानेवालों ने ‘जो तुम पर अत्याचार करते हैं’ अपने स्वंय के विनाश की युक्ति व ईश्वरीयनिंदा का कार्य किया होगा | यीशु के नाम की निंदा, निंदनीय व द्वेषपूर्ण भाषा का उपयोग की आशा तभी की जा सकती है जब दोषी उस नाम का धारक हो और अभियोक्ता एक अंधभक्त यहूदी हो | यही वह समय है कि पवित्र आत्मा उनका वकील बने, सीधे सीधे उन ‘अज्ञानी’ विश्वासियों से बात करें, उन्हें भय से मुक्ति दिलाये या सिर्फ यीशु के लिए उनकी साक्षी की पुष्टि करें | दोनों में से कोई एक मार्ग आदरणीय नाम को ऊपर उठाने के लिए अपनाना होगा |

हमारे पास सुनहरा नियम है, “अपने लिए तुम जैसा व्यवहार चाहते हो अन्य लोगों के साथ वैसा व्यवहार करो” और हमारे पास भव्य नियम है कि “तुम अपने पड़ोसियों से अपने समान ही प्रेम रखना”(8) |अन्य धर्म अपने सदस्यों को यह विरोधी निषेधाज्ञा देते हैं, दूसरों के साथ वैसा न करो जिसे हम घृणित पाते हैं |ईसाइयत हमें सकारात्मक रूप से कार्य व व्यवहारिक रूप से अपने पड़ोसियों से प्रेम करने के बारे में कहती है | मसीह के चंगाई पुरोहिती कार्यों में आने वाले अधिकांश लोगों का यह मत था “उसने जो भी किया सब अच्छा किया” ( मरकुस 7:37)| यह इसलिए था क्योंकि उनके कार्यों की केवल यह एक अभिप्रेरणा थी कि मित्रों और दुश्मनों से प्रेम करना |जब तुम दूसरों से वैसा ही प्रेम करते हो जैसा अपने आप से करते हो तो तुम कुछ अच्छा ही करते हो |इससे अधिक तुम कुछ नहीं कर सकते हो |परन्तु हम अपने आप से किस प्रकार से प्रेम करते हैं ? अपने कानों में मीठी बातें फुसफुसाकर स्वंय को सही दिन पर वेलेनटाईन कार्ड भेजकर, अपनी आत्मप्रशंसा करते हुए आनंद में अपना ही लाड दुलार करते हुए या अपने गालों पर चुम्बन लेते हुए क्या हम अपने आप से प्रेम करते हैं | हम अपने शरीर का जो परमेश्वर ने हमें दिया है का ध्यान रखते हुए, सही प्रकार का भोजन करते हुए, अपने लिए घर व कपड़ों की व्यवस्था करते हुए,साथ ही अपने दिमाग में सुधार करके या अभ्यास करके और अपनी आत्मा को ऊपर उठाते हुए, अपने आप से प्रेम करते हैं | इसी प्रकार से जब हम दूसरे लोगों का भी इन सब बातों में ध्यान रखते हैं, हम वास्तव में दर्शाते हैं कि हम उनसे प्रेम करते हैं |

नियम में एक अर्थपूर्ण सूक्ति है कि न्याय सभी के लिए एक समान है | कानून के अंतर्गत सभी बराबर हैं (9)यदि तुम लोगों के साथ पक्षपात करते हो तो यह पाप है, परमेश्वर का नियम हमें पापी के समान दोषी ठहराता है | केवल एक पाप मुझमें और परमेश्वर के बीच बाधा निर्माण करने के लिए पर्याप्त है | हालाँकि पक्षपात की प्रकृति ‘केवल एक’ पाप नहीं कर सकती है | प्रतिकूल प्रकृति वाला मनुष्य प्रत्येक दिन अपने प्रतिकूल आचरण को दर्शाता है | फिर भी, परमेश्वर का वचन स्पष्टरूप से कहता है कि यदि हम पूरे नियमों का पालन करें और उनमें से एक में असफल हो जाएँ तो हम वचन और नियमों की आत्मा दोनों को तोड़ते हैं | कितने पाप तुम्हे एक अपराधी बनाते हैं ? केवल एक | नाव के तले में कितने छेद उसे डुबाने के लिए पर्याप्त है ? केवल एक | अनुमानित दिन पर परमेश्वर के न्याय देने पर हम बहस करने की अपेक्षा बहते हुए समुद्र को एक बर्तन में भरने पर अधिक बहस कर सकते हैं (२कुरिन्थियो 5:10)तब हम पाएंगे कि हम उनके उच्च स्तर से कितने दूर छोटे से स्तर पर गिर चुके हैं (रोमियो 3:23)|

किसी भी बात में यह केवल एक उल्लंघन या अतिक्रमण नहीं है जिसका हिसाब हमें देना होगा | हम लोग हमारे द्वारा किये गये अनगिनत पापों को जो हमने किये हैं, और उन कर्तव्यों को जो हमने पूरे नहीं किये हैं,को गिनने में गुम हो जायेंगे | तब से अब तक जो हमारे भूतपूर्व पाप हैं को परमेश्वर और याद नहीं रखेंगे,शायद हम उनके पुत्र द्वारा मुफ्त में स्वतंत्र किये गये हों और उन गैरजिम्मेदारियों के साथ अब न हो, परन्तु सिर्फ यह याद रखने के लिए कि हम एक कर्जदार हैं और हमें इससे भी अधिक श्रध्दापूर्वक उपासना करने की आवश्यकता है (रोमियो 1:14,15)जब हम व्यवस्था के एक बिंदु की उपेक्षा करते हैं, हम व्यवस्था देनेवाले की उपेक्षा करते हैं;जिसने यह नियम दिए हैं उन्ही के पास से नियमों की एकता आती है (4:12)|

याकूब नैतिक नियमों में से दो अत्यधिक लज्जाजनक अतिक्रमणों को गिनते हुए आगे बढ़ते हैं(11), व्यभिचार और खून तुम इस पर आपत्ति करोगे और चिल्लाकर रोओगे “हम दोषी नहीं”| हम लोगों को पहाड़ पर दिए गये प्रवचन को फिर से याद करने की आवश्यकता है और अपने हृदयों में खोजने की आवश्यकता है यदि अपनी अबोधता स्थापित करना चाहते हैं ( मत्ती 5:21,22,27,28८)| तुम्हारे शब्दों (वचनों)और कार्यों में वास्तविकता द्वारा नियमितता हो तब स्वतंत्रता के नियम अनुसार तुम्हारा न्याय हो सकेगा (12२) | यह आत्मा का नियम है पत्र का नहीं | वह व्यक्ति जो इस बात का बहुत ध्यान देता है कि वह परमेश्वर के नियमों में एक या उससे अधिक का पालन करे,को सभी कुछ देखने वाले न्यायाधीश द्वारा दिखाया जायेगा कि अधिकतर वह इससे अधिक दयनीय रूप से नियमों का पालन करने में असफल है | “ अधिकतर बातों में हम सभी अपराधी हैं” (4:2)| परमेश्वर जिन्होंने हमें अपने पड़ोसियों व शत्रुओं से प्रेम करने का आदेश दिया है ,ने स्वयं हमसे प्रेम किया है जबकि हम उनके शत्रु थे | वह जो दयावानों पर अपनी आशीष देता है, वह अपनी दया को न्याय पर विजय देगा (यूहन्ना 3:17)|

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