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Previous Lesson -- Next Lesson रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 3 - परमेश्वर की धार्मिकता मसीह के अनुयायियों के जीवन में दिखाई देती है। (रोमियो 12:1 - 15:13)
11. यहूदियों के विश्वासियों, और अन्यजातियों के विश्वासियों के बीच मत भेदों पर मसीह ने विजय पाई (रोमियो 15:6-13)रोमियो 15:6-13 जो कोई भी रोमियों को लिखी गई पत्री के अध्याय 9 से 15 तक पड़ता है, वह यह जान पाता है कि मूल रूप से यहूदियों में से आये ईसाई और अन्यजातियों के लोग एक जैसा जीवन जीते थे, और एक अन्यायपूर्ण मतभेद का निर्माण करते थे| इन मतभेदों में महत्वपूर्ण थे खतना, मूसा के नियम के अनुसार खाध्य पदार्थ और यहूदियों एवं ईसाई वचन| पौलुस का रोमियों को पत्री लिखने का उद्देश्य था कि यहूदियों के विश्वासियों और अन्यजातियों को एकत्रित करना, और जो अंतर उनमे था उस पर एक पुल बनाना क्योंकि स्वयं मसीह ने उन्हें एकत्रित किया था| इसीलिए पत्री के अंत में आपने लिखा: “तुम्हारे मूल और पारंपरिक मतभेदों के स्थान पर एक दूसरे को सहन करो, जैसे यीशु मसीह ने तुम्हे स्वीकार किया और बचाया था| और जो कोई भी इस उद्धार के रहस्य को पहचानता है वह अन्य लोगों के साथ बिना किसी मतभेद, भेदभाव, या घृणा, के स्थान पर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की महिमा करता है| प्रेम के लिए अलग अलग विश्वासियों की एकता की आवश्यकता है, और मसीह का प्रेम किसी भी काल्पनिक मतभेद की अपेक्षा अधिक बलवान है| मूल यहूदियों के विश्वासियों के सामने पौलुस ने इस सिद्धांत को स्पष्ट किया और घोषित किया था कि, परमेश्वर के सत्य और धार्मिकता को प्रकट करने के लिए, और उनके वादे को शब्द एवं कार्यों द्वारा पूरा करने के लिए, अपेक्षित मसीहा यहूदियों के सेवक बने थे| इसलिए मसीह ने, विश्वास के पिताओं की सेवा में, स्वयं उनके बारे में प्रकटित अनेक वादों को पूरा किया था ताकि वे जान पाये कि सत्य को घुमाया नहीं जा सकता है| उपदेशक ने अस्वच्छ अन्यजातियों के विश्वासियों को समझाया था कि परमेश्वर की महिमा करना उनका अधिकार था, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर अपनी दया की थी और स्वयं अपने साथ उनकी संधि करके, उन्हें अपनाया और उनका नवीनीकरण किया था| जो यहूदी नहीं थे, उन लोगों द्वारा पिता और पुत्र की प्रशंसा, मसीह में उनके चयन का प्रमाण था| यह पुराने नियम के वादों की पूर्ति भी थी, क्योंकि मसीह अन्यजातियों की रोशनी भी थे, और अन्यातियों के ईसाई भी परमेश्वर के आनंद में हिस्सा लेने के अधिकारी थे क्योंकि स्वयं मसीह ने यह स्पष्ट किया कि वे चाहते थे कि उनके आनंद की पूर्ति उनमे भी हो (यूहन्ना 15:11, 17:13)| यद्यपि, अन्यजातियों के विश्वासियों ने यहूदियों के विश्वासियों को भूलना नहीं चाहिए परन्तु उन लोगों ने पिता और पुत्र की महिमा, अपने पूरे हृदयों के साथ, एक स्वर में करना चाहिए| (व्यवस्थाविवरण 32:43) पुराने नियम के यह वादे पूरे महाद्वीपों के एक छोटे से हिस्से से बंधे हुए नहीं थे, परंतु यह सभी राज्यों के लिए थे कि वे प्रभु यीशु के पिता की महिमा कर पाये (भजन संहिता 117:13)| इन बहुमूल्य प्रतिज्ञाओं में हम आद्यात्मिक सत्ता और मनुष्यों के लिए महान उद्धार को पाते है| वह जो मसीह में विश्वास करता है, उनकी दया की विपुलता में भागीदारी करता है| यशायाह का पूर्वानुमान था: “यिशै के तने से एक अंकुर निकलेगा... उस दिन यिशै की जड़ लोगों के लिए जैसे एक झंडे के रूप में खड़ा रहेगा; राज्य उसके लिए उठखड़े होंगे, और उनकी आशाएं इस झंडे को टांकने वाली पिन के रूप में होगी|” यह भविष्यवाणी यीशु में संपादित हुई थी, क्योंकि वह परमेश्वर के दाहिनी हाथ की ओर बैठते हैं, यीशु ने अपने शिष्यों को यह आज्ञा भी दी है कि जाओ और सभी राज्यों में शिष्य बनाओ ताकि वे भी उनका मार्गदर्शन पा सके और उनकी आत्मा से भर सके, और परमेश्वर का राज्य उनमे भी फले फूले| अन्यजातियों के उपदेशक की प्रार्थना का उद्देश्य उस आशा को जिससे विश्वासियों की एकता आती है, बाहर फैलाना है| उपदेशक ने पवित्र त्रयी की एकता में सही विश्वास की स्थापना करने के लिए, स्वर्ग के आनंद के साथ दोनों शरीरों की पूर्णता एवं शांति के राजकुमार के साथ शांति को ढूंढ लिया था ताकि वे सभी पवित्र आत्मा की शक्ति और आशा में धनी बन जाएँ| प्रार्थना: ओ स्वर्गीय पिता, हम आपसे आपके पुत्र यीशु के द्वारा प्रार्थना करते हैं कि मूल यहूदियों के विश्वासियों का मार्गदर्शन कीजिए कि वे मूल अन्यजातियों के विश्वासियों से घृणा ना करे; परन्तु सभी विश्वासी यह जाने कि वे सभी यीशु मसीह की क्षतिपूर्ति के द्वारा एक अटूट इकाई बन गये है| मसीह में पूरी तरह से स्थापित होने और विश्वास में एक दूसरे के पास आने का अनुग्रह उन्हें प्रदान करें ताकि वे पवित्र आत्मा की शक्ति में एकत्रित हो पाये आमीन| प्रश्न: 92. पौलुस, रोम की कलीसिया में आवश्यक मतभेदों के ऊपर कैसे विजय पाने की आशा रखते थे?
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