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Previous Lesson -- Next Lesson यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
ब - यीशु जीवन की रोटी हैं (यूहन्ना 6:1-71)
1. पाँच हजार पुरुषों को खिलाना (यूहन्ना 6:1-13)यूहन्ना 6:1–4 यरूशलेम में यीशु ने सब्बत के दिन एक बीमार को चंगा कर अपनी दिव्यता का अनावरण किया और इस तरह परमेश्वर के प्रेम और व्यवस्था के तदन्यों के बेकार विचारों के बीच पाये जाने वाले अंतराल को दिखाया | व्यवस्था के तदन्यों ने घ्रणा के कारण आप का काम तमाम करने की ठान ली | परन्तु पवित्र आत्मा आप को उत्तर की ओर गलील की तरफ ले गई जहाँ आपके और आप के विरोधियों के बीच का विवाद निर्णायक स्थिती में पहुँचता | उत्तरी विभाग की जनता अब भी जहाँ कहीं आप जाते,आप के पीछे हो लेती थी | यरूशलेम में व्यवस्था के तदन्यों को डांटने के बाद उन्हों ने आप के विरुद्ध योजना बनायी और आप के पीछे जासूस लगा दिये | परन्तु आप का समय अब तक नहीं आया था इस लिये आप यहुदियों के उच्च न्यायालय के क्षेत्र से निकल कर वापस गलील चले गए | जैसा की हम पहले तीन सुसमाचारों में पढ़ चुके हैं कि आप ने वहाँ कई आश्चर्यकर्म दिखाये थे | जैसे ही वहाँ आपके पहुंचने की खबर फैल गई, बहुत ज्यादा शोर गुल मच गया परन्तु यीशु को कोई बाधा ना आई और ना वो चिंतित हुए क्योंकि आप जानते थे कि राजधानी में आप को जिस छलपूर्वक गुप्त मनोवृति का सामना करना पड़ा था वो यहां भी गावों में उभर आयेगी | और आप के साथ यहां भी दुर व्यवहार किया जायेगा | इस लिये आप यर्दन के पूर्व गोलन कि तरफ चले गए ताकी अपने चेलों के साथ एकांत में रहें | परन्तु आपके वचन की भूकी भीड़ आप के पीछे हो ली और चाहती थी के आपके आश्चर्यकर्म देखे | उस साल यीशु फसह के पर्व के लिये यरूशलेम नहीं गये क्योंकि आप की मृत्यु का समय अब तक नहीं आया था | आप ने वह पर्व उस भीड़ के साथ मनाया जो आप के आस पास खड़ी थी | इस तरह इस पर्व ने फसह के पर्व की जगह ली | यह उस आस्मानी भोज की तरफ इशारा था जिसे मुक्तिदाता अपने सन्तों के साथ मिल कर अत्यंत आनन्द के साथ खाने वाले हैं | यूहन्ना 6:5–13 जब यीशु ने भीड़ को आते देखा तो अपनी ऑंखें अपने आस्मानी पिता की ओर उठा कर उसका सम्मान और गौरव किया और उन भूखे लोगों की चिंता पिता को सौंप दी | इस के साथ आश्चर्यकर्म शुरू हुआ | पिता ने बेटे को ऐसा काम सौंपा जिस से लोगों के दिलों पर से पर्दा हट जाता | सब से पहले जब यीशु ने फिलिप्पुस से पूछा कि इतने लोगों के लिये रोटी कहाँ से खरीदें, तब आप ने अपने चेलों का विश्वास परखना चाहा कि वो सच में बढ़ता चला जा रहा है या वो अब तक नास्तिकतावाद और दुनियावी विचारों से जुड़े हुए हैं | ऐसे समय पर हमें बेकरियों का विचार आता है परन्तु यीशु ने अपने पिता को याद किया | हम पैसों और मंहगाई का विचार करते हैं परन्तु यीशु ने अपने दिव्य सहायक को याद किया | फिलिप्पुस ने तुरन्त विश्वास का सहारा लेने के बदले सौदे की कीमत देने का विचार किया | जो मनुष्य पैसों की सोचता है वो परमेश्वर की तरफ से मिलने वाली संभावनाओं को नहीं समझ सकता | चेलों का आंकलन ठीक था | वहाँ नज़दीक कोई बेकरी या आटे की चक्की थी ना उनके पास रोटियां पकाने के लिये समय था परन्तु वहां लोग थे जो बहुत देर से प्रभु का वचन सुनते हुए बैठे थे और भूख से निढाल हो गये थे | अचानक पवित्र आत्मा ने अन्द्रियास के दिल में यह बात डाल दी और उसने एक लड़के को देखा जिसके पास पाँच रोटियां और दो मच्छ्लीयाँ थीं | उस ने उस लड़के को बुला कर कहा, “ तेरे पास जो रोटियां और मच्छलियाँ हैं वो दे दे |” अन्द्रियास को इस बात की निश्चय ही आशंका थी कि जितना खाना प्राप्त हुआ था वह अपर्याप्त था | इस तरह यीशु ने चेलों से उनकी असफलता स्वीकार करवाई | क्योंकी वो नहीं जानते थे कि क्या किया जाये | वो ना तो परमेश्वर की इच्छा जानते थे ना यह कि अब यीशु क्या करने वाले हैं | यीशु ने चेलों से कहा वो भीड़ को व्यवस्थित रूप में बिठा दें और उन्हों ने लोगों को ऐसे तरीके से बिठाया जैसे कोई बड़ा प्रीति भोज होने वाला है | उस जगह हरी घास ऊगी हुई थी, मानो वो भीड़ में उमंडते हुए विश्वास का चिन्ह हो | औरतों और बच्चों के साथ पाँच हज़ार आदमी एक बड़ी संख्या होती है | इन में से अधिकतम लोगों ने ना यीशु को और ना ही आपके आश्चर्यकर्मों को देखा था परन्तु वे आपकी आज्ञा के अनुसार बैठ गये | यीशु ने बड़ी शान्ति से रोटियां लीं और इस मौके पर अपनी सुजनशील शक्ती का प्रदर्शन करने की ठान ली | आप ने धन्यवाद करते हुए वो पाँच रोटियां अपने आस्मानी पिता के सामने रख दीं | आप को विश्वास था कि परमेश्वर इस छोटी मात्रा को आशीष दे कर कई गुणा बढ़ा देंगे | इस थोड़े से खाने के लिये धन्यवाद देना और आप का परमेश्वर को सम्मान देना ही इस आश्चर्यकर्म का रहस्य है | क्या तुम परमेश्वर की छोटी से छोटी मात्रा में दी गई वस्तु को प्रसन्नता के साथ ग्रहण करते हो या उन्हें लेकर शिकायत करते हो ? क्या तुम अपनी छोटी वस्तु मित्रों के साथ बांटते हो | यीशु अपस्वार्थी नहीं थे; आप में परमेश्वर का प्रेम समाया हुआ था और आपने पिता को सम्मान देते हुए परमेश्वर की आशीष सब लोगों में बांट दी | यह आश्चर्यकर्म चारों सुसमाचारों में बगैर किसी तड़क मडक के प्रस्तुत किया गया है | हो सकता है मसीह के बहुत ही नज़दीक बैठे हुए लोगों के सिवाय किसी और ने यह आश्चर्यकर्म ना देखा हो और यह भी ना देखा हो कि जैसे जैसे आप रोटियां तोड़ते गये वो और अधिक प्रगट होती गईं, ऐसा लगता था मानो यह रसद खतम ही ना होगी | चेले उन बैठे हुए लोगों के बीच आगे पीछे जाकर उनकी आव्यश्कता के अनुसार रोटियां देते रहे | यह अनुग्रह का चिन्ह है | परमेश्वर क्षमा और आत्मा बेहिसाब देता है | जो चाहे ले लो | जितनी मात्रा में चाहो विश्वास करो | जो आशीष पाते हो उस में से दूसरों को भी दो | उन के लिये भी आशीष चाहो जैसे की तुम आशीष पा चुके हो | और इस तरह तुम दूसरों के लिये आशीष का स्त्रोत बन जाओगे | काना में यीशु ने पानी को दाखरस में बदल दिया और गोलन में आप ने पाँच रोटियों को इतनी मात्रा में बढ़ा दिया कि वो पाँच हज़ार लोगों को बस हो गईं | आश्चर्य की बात यह है कि खाने के बाद पहले की मात्रा से कहीं ज़्यादा रोटियां बचीं थीं | बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भरी गईं और यीशु ने आज्ञा दी कि कुछ भी नष्ट ना हो | कितनी लज्जा की बात है कि आज कल लोग यह जानते हुए भी कि हर घंटे हजारों लोग भूख से मर रहे हैं, बचा हुआ खाना कचरे के डिब्बों में फेक देते हैं | अपनी असावधानी से तुम्हारी मिली हुई आशीष को नष्ट ना कीजिये | बल्की अनुग्रह के टुकड़े जमा कीजिये | इस तरह परमेश्वर का वरदान इतना पाओगे कि उसे रखने की जगह ना होगी | उस नवजवान लड़के की मनोवृत्ती का अंदाज़ा लगाईये जब यीशु ने उसके हाथ में से रोटियां ली होंगी और उस ने उन्हें कई गुणा बढते हुए देखा होगा | उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गई होंगी | वह इस आश्चर्यकर्म को कभी ना भूलेगा | प्रार्थना: ऐ प्रभु यीशु , हम आपको धीरज और प्रेम के लिये धन्यवाद करते हैं | हमारे विश्वास की कमी के लिये हमें क्षमा कीजिये | हमें सिखाईये कि जब हम संकट में हों तो अपनी योग्यता पर विश्वास ना करके आप के दिये हुए साधनों पर विश्वास करें | हम उस आत्मिक खजाने के लिये जो आपने हमें वरदान में दिया है और उस अल्पसंखिक सम्पत्ती के लिये भी जो हमारे पास है, आपका धन्यवाद करते हैं | जब हमारे पास कुछ ना हो तब हमें आशीष दीजिये | हमारी सहायता कीजिये ताकी हम कोई वस्तु नाश न होने दें, ना अपने उपहार कि उपेक्षा करें | प्रश्न: 44. पाँच हज़ार पुरुषों को खिलाने का रहस्य क्या है?
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